डरते डरतेदरवाजा खोला तो सामने पत्नी के बदले रावण का रूप धारण किए हुए कोई बहुरूपिया सा।एक सिर के साथ दस सिर लगाए हुए। गत्ते के। गदा के बदले खिलौने जैसी बंदूक साथ लीहुई तो दूसरी तरकश की तरह पीठ के पीछे लटकाई हुई।
‘यार , तूने तो डरा हीदिया था।'मैंनेश्रीमती के डर से उग आए माथे के पसीने को पोंछते हुए कहा।'
‘हा हा हा...पहचान लिया मुझे क्या? गुडमार्निंग। हाउ आर यू डियर? मैं तो हूं हीऐसा कि जिसने मुझे सपने में भी न देखा हो, वह भी मुझे देखते ही पहली नजर में पहचान जाए।'
‘आर यू रावण ही न?' मैंने अपनी स्मरणशक्ति का भरपूर उपयोग करते हुए कहा,‘ रावण को पहचानना कौन सा मुश्किल है। क्यों ? पिछली बाररामलीला में देखा था गत्ते के सिर वाला।'
‘वैरी गुड यार!तुम्हारी याददाश्त तो सुबह शाम बरतन धोने के बाद भी ज्यों की त्यों बरकरार है।पर मैं सच्ची का रावण हूं फार यूअर काइंड इंफारमेशन।'
‘ तो हम आज तक क्याजलाते रहे?'
‘घास फूस कारावण।' कह उसने एकठहाका और लगाया।
‘अच्छा आओ भीतरआओ। चाय पिलाता हूं। चैन से बातें करते हैं। यहां कोई मुझे तुम्हारे साथ देख लेगातो.... दोगले से हो गए आजकल लोग बाग।' और मैं उसे भीतर ले आया। कुछ कुछ सादर।
ज्यों हीवह कुर्सी पर आराम से यों विराजा जैसे वह रामलीला के सिहांसन पर विराजा तो शक कीकोई गुंजाइश न रही। मैंने उससे पूछा,‘ असली होकर ये गत्ते के सिर???'
‘क्या करूं यार।हर चुंगी पर कोई न कोई मिलता रहा। कम्बख्त मुफ्त में कोई चुंगी पार करने कीनहीं दे रहा था।'
‘तो??'
‘देने को भारतीयमुद्रा तो थी नहीं सो सबको चुंगी पार करवाने के एवज में एक एक सिर देता रहा। जब एकही सिर बचा तो अगले चुंगी वाले को पता ही नहीं चला कि मैं कौन हूं। और मैं मजे सेयहां आ गया।'
‘यहां क्या करनेआए हो?'
‘ देखने आया था कितुम्हारे शहर में मेरे नाम पर लाखों का चंदा इकट्ठा कर अबके दशहरे में कितने इंचका रावण बनने जा रहा है।'
‘ पर ये गत्ते केसिर क्यों लगा लिए?'
‘ न लगाता तो क्यातुम मुझे पहचान लेते? दूसरे आदत सी बन गई है परंपरा ढोने की। एक सिर के बिनाअटपटा सा लगता है।'
‘तो अब क्यासीता चुराना बंद कर दिया है या....' कह मैं उसकी आंखों में गंभीर हो ताकने लगा।
‘बुरा मत माननायार! कड़वा लगेगा। अब कहां हम लोग, कहां तुम लोग। कहां वो पंचवटी! अब जहां देखोकंकरीट ही कंकरीट के जंगल। अब तुम्हारे समाज में राम भी कहां हैं और सीताएं भीकहां? लक्ष्मण भरत तोदूर की बात रही। कहां वो राजा,कहां वो प्रजा! अब तो किसी की पत्नी का अपहरण करने के लिएकिसी रावण की भी आवश्यकता नहीं, भाई ही भाई की पत्नी का अपहरण कर ले जाता है। तब राम कोबनवास के वक्त भरत ने राम की खड़ाऊं लेकर ही चौदह बरस जन सेवा की थी और आजप्रधानमंत्री बेचारे डर के मारे अपना इलाज करवाने भी नहीं जाते कि वापिस आएंगे तोकार्यकारी ही कुर्सी पर कब्जा न किए बैठा हो। राम की पत्नी सीता को तो मैंनेमोक्षवश अपहरा था, लंका में तब भी सीता मेरे यहां सेफ थी पर अब तो अपने पति केसंरक्षण में भी पत्नी सेफ नहीं। सीता का अपहरण होने पर तब राम ने रो रो कर सारावन सिर पर उठा लिया था और आज का पति पत्नी के अपहरण की खुशी में पुलिस स्टेशन तकलड्डू बांटता फिरता है। अपने जमाने में जरूरमंद को घर नहीं दिल में रहने को जगहदी जाती थी और आज मकान तो मकान, कोख भी किराए पर दी जाने लगी है। अब तो यहां संबंध हीपहचानने मुश्किल हो गए दिखते हैं मुझे तो। हूं तो रावण पर ये सब देख अब मुझे भीयहां से ग्लानि होने लगी है। यार, अब कहां हैं वैसे पति कि जो पत्नी के पीछेकिसी रावण से पंगा ले लें। अब तो वे सोचते हैं, कोई रावण आए और उन्हें पत्नी से मुक्ति कातोहफा दे। सच कहूं, मन खट्टा हो गया यहां आकर।' ' कह वह उदास साहो गया। उसने अपने सिर में आहत हो हाथ दिया तो एक बार फिर विश्वास होने के बादनहीं लगा कि ये सच्ची का रावण हो। सो शंका का मारा पुनः पूछ बैठा,‘यार! तुम सच्चीके रावण हो??'
‘कोई शक?राम पर तो तुमनेहर वक्त ही शक किया कम से कम रावण पर तो शक न करो। वह तो यत्र तत्र सर्वत्र है।क्षण क्षण में।' उसने कहा तो मैं झेंप गया।
‘मेरे घर का नामपंचवटी है।'
‘हां पढ़ लियाथा। तभी रूका था यहां कुछ देर के लिए।' उसने कहा तो किसी अज्ञात खुशी की खुशी मेंमेरे मन में लड्डू फूटने लगे।
‘ तो पंचवटी देखमन में सोए भाव नहीं जागे?'
‘कहना क्याचाहते हो?सीधी बातकरो प्रभु चावला की तरह।'
‘चाहता हूं मेरीपत्नी का हरण कर दो। मैं तुम्हें दिली आमंत्रण देता हूं। बहुत तंग आ गया हूंउससे। बहुत खर्चीली हो गई है।' मैं लोक लाज छोड़ अपनी पर आया तो वह हंसा। हंसता ही रहा।कुछ देर बाद अपनी हंसी रोक बोला,‘ क्यों? कलयुग में भी बदनाम करवाना चाहते हो? हद है यार! मर्दहो पत्नी द्वारा लगाई पत्नी रेखा में रह क्या यही चाहते हो कि अगले युग में भीजलता रहूं। कुत्ते का कुत्ता बैरी तो सुना था यार पर अब तो इस समाज में मर्द काबैरी मर्द ही हो गया। एक और नया मुहावरा! '
‘क्या है न किप्रभु मैं अपनी पत्नी से सच्ची को बहुत तंग आ गया हूं।' कह मैंने दोनोंहाथ जोड़ दिए या कि वे खुद ही जुड़ गए, राम जाने।
‘सच कहूं! अब इसयुग के सामने तो मैं भी जैसे आउट डेटिड हो गया हूं यार! इस सबंधों के संक्रमण केदौर में मैं मंदोदरी को ही नहीं संभाल पा रहा और तुम कहते हो कि..... ' और वह बिन चायपीए ही मेरे घर से चला गया।
हाय रेमरे भाग!!
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