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जिससे रंगीन है ज़िंदगी, सोच का वो लहू है ग़ज़ल --जगदीश बाली (लेख साभार जगदीश बाली जी की फेस बुक वॉल से)

बहुत कम ऐसे लोग होंगे जो ग़ज़ल नहीं सुनते। मुझे भी ग़ज़ल सुनने का शौक है। अक्सर सुनते सुनते खो सा जाता हूं। ग़ज़ल कभी कायल बनाती है और कभी घायल कर देती है। अभी-अभी एक ग़ज़ल सुन रहा था- तुमने बदले हमसे गिन गिन के लिए ...। सुनते-सुनते इसी में रम गया। जब अपने में आया तो ख्यालों में एक सवाल उभर आया, ‘ये गजल भी क्या नायाब चीज़ है। अनायास ही लबों से निकल आया, 'गजल शय क्या है जान लीजिए, मय का प्याला है मान लीजिए।‘ इस पर मत जाइए कि ये मेरा शे'र बना या नहीं बना है। शे'र बना न बना अलग मुद्दा है। मैंने तो यहां ग़ज़ल की बाबत एक ख्याल जाहिर किया है क्योंकि आदमी के ज़ेहन में ख्यालों का उभरना एक पैदाइशी फितरत...

“लेखन में कोई किसी का गुरु नहीं होता, लेखक स्वयं अपना गुरु होता है।”---रत्नचंद ‘रत्नेश’

लघुकथा कार रतन चंद रत्नेश से साहित्यकार नेतराम भारती की बातचीत। साभार : नेतराम भारती के फेसबुक प्रोफाइल सेhttps://www.facebook.com/share/p/tbYDxEA5vkDRAdsv/?mibextid=oFDknk*************नेत राम भारती :-सर ! क्या कारण है कि आज लेखक विश्वसनीय नहीं लगते, जबकि वे समाज का दर्द, उसके निवारण और सरोकारों की आवाज़ भी अपने लेखन में उठाते रहते हैं ?रतन चंद ‘रत्नेश’- एक अच्छी लघुकथा या कहानी कल्पना और यथार्थ के धरातल से उपजती है। कल्पना का मुख्य ध्येय शिल्प या कलात्मकता है। सपाटबयानी किसी भी रचना को कमजोर बना देती है। पाठक को उसमें कुछ भी नया नजर नहीं आता है। अविश्वसनीय रचनाओं की बाढ़ विश्वसनीयता को बहा...

महिला साहित्यकार और समाज सेवा सम्मान से किया अलंकृत

राष्ट्रीय महिला दिवस-2024 के अवसर पर राष्ट्रीय कवि संगम, हिमाचल द्वारा साहित्यिक लेखन, समाज सेवा और कला संस्कृति के प्रसार-प्रचार में उत्कृष्ट योगदान के लिए हिमाचल प्रदेश की महिला साहित्यकारों और महिला समाज सेविकाओं को राज्य स्तरीय महिला साहित्यकार और समाज सेवा सम्मान से अलंकृत किया गया। यह कार्यक्रम सप्त सिंधु परिसर देहरा 2 हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय में 9 मार्च 2024 को आयोजित हुआ। जिसमें मुख्य अतिथि डॉक्टर संजीत सिंह ठाकुर अधिष्ठाता समाज विज्ञान संकाय हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय और कार्यक्रम की अध्यक्षता राष्ट्रीय कवि संगम हिमाचल अध्यक्ष डॉ संदीप शर्मा ने की। सम्मान समारोह...

कविता - नीलम शर्मा अंशु

कविता - नीलम शर्मा अंशु
1. तू किसी को ख़्वाब की मानिंदअपनी नींदों में रखे ये रज़ा है तेरीपर यहां किस कंबख्त को नींद आती है ?अरे, तुझसे भले तो ये अश्क हैंकभी मुझसे जुदा जो नहीं होते!टपक ही पड़ते हैंभरी महफि़ल या तन्हाई मेंकहीं भी, कभी भीबेमौसम बरसात की तरह।2.ये हो न सका !चाहा तो था बहुतकि दिल में नफ़रत का गुबारभर जाए तुम्हारे प्रतिपर जहां पहले से हीमुहब्बत पाँव पसारे बैठी थीवहाँ चाहकर भी ये हो न सकामुझे माफ़ कर देना, ऐ दिल !मैं दिमाग़ की सुन न सकादिल और दिमाग़ के द्वन्द्व मेंये हो न सकाचाहा तो था बहुत......3.कैसा लगता है.......मुझे पता है कैसा लगता है.......जब  सब कर रहे होते हैं इंतज़ारबड़ी बेसब्री से, रविवार...

डॉ. शंकर वसिष्‍ठ की पुस्‍तकें

 डॉ. शंकर वसिष्‍ठ की पुस्‍तकें
 डॉ. शंकर वसिष्‍ठ की पुस्‍तकें&nb...
Virtue is insufficient temptation.
George Bernard Shaw
(1856-1950)
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