साथियो ! 'संस्कृति सरोकार' एक ऐसा मंच है जिस पर आप भी अपनी बात रख सकते हैं । स्वागत है आप सबका। आप भी अपनी रचनाएं, आलेख rjneelamanshu@gmail.com पर मेल कर सकते हैं। 'मेरी, उनकी, हमारी बात' कॉलम में हम इस बार इमरोज़ जी की रचनाएं शामिल कर रहे हैं। जाने-माने कलाकार-चित्रकार इमरोज़ किसी परिचय के मुहताज नहीं। उनके कला जगत से तो आप परिचित हैं ही, आईए मिलवाते हैं आपको कवि-शायर इमरोज़ से भी। वे न सिर्फ़ अपनी तूलिका से कमाल दिखाते हैं बल्कि अपनी कलम से भी। प्रस्तुत हैं यहां उनकी कुछ पंजाबी नज़्मों का हिन्दी रूपांतर-
1. नज्में
उड़ते क़ाग़ज़ों पर
मैंने नज़्में लिखीं
कितनी तुम तक पहुंची
और कितनी नहीं.....
पता नहीं।
2 . रब्ब
जिस ने ख़ुद
को गंवा लिया
उसने
रब्ब भी गंवा दिया।
3 . आसमा/घर
धरती पर
अपने-अपने
आसमां भी होते हैं.....
फूल, तितलयों के
पेड़ पंछियों के
ख़्याल अक्षरों के
सपने ज़िंदगी के
और प्यार प्यार का
आसमां होता है।
4 . दीदार
गैरहाज़िर को नहीं
हाज़िर को ही
दीदार हो जाता है
रब्ब का भी
ख़ुद का भी।
5. मुहब्बत
पाठ भी वही
जो बिना शब्द
अपने आप
होता रहे
मुहब्बत भी वही
जो चुपचाप
फूलों की भांति
ज़िंदगी में
महकती रहे।
6. सच
बादशाह भी
सच से डरता है
औरंगज़ेब से पूछ कर देख लें
परंतु सच
किसी से नहीं डरता
सरमद को सुन कर देख लें।
7 . शुक्रिया
जब तुम आ जाती हो
मन ही मन
मैं नाचता रहता हूं
तुम्हारे अस्तित्व के साथ....
जब तुम चली जाती हो
मेरे वज़ूद में
खुद-ब-खुद
तुम्हारे अस्तित्व का शुक्रिया
अदा होता रहता है........
8 . कविता
ज्यों-ज्यों
साहित्य में
कवि बढ़ते जा रहे हैं
जीवन में
कविता घटती जा रही है.......
साभार - पंजाबी त्रैमासिक पत्रिका 'हुण'
(पंजाबी से रूपांतर - नीलम शर्मा 'अंशु' 30 - 04 - 2009)
मेरी, उनकी, हमारी बात - 1
Posted by :नीलम शर्मा 'अंशु'
ON
Thursday, April 30, 2009
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