राजा जनक न्यायप्रिय शासक थे ! एक बार किसी ब्रह्मण से कोई अपराध हो गया ! रजा जनक ने आदेश दिया की उसे राज्य से निकल दिया जाये ! ब्राहमण शास्त्रों का ज्ञानी था ! उसे इस बात का दुःख हुआ की अनजाने में हुए अपराध के लिए उसे राज्य से निकला जा रहा है ! वह यह भी जनता था की राजा जनक परम विरक्त है ! शास्त्रों की चर्चा करने को वह सदेव तत्पर रहते है ! ब्राहमण उनके महल में जा पहुंचा ! विनम्रता से राजा जनक को अपना परिचय देते हुए उसने कहा महाराज राज्य से निष्काशन का आपका आदेश मुझे मान्य है ! किन्तु यह बताने की कृपा करें की आपके राज्य की सीमा कहाँ तक है ! ताकि मैं उससे बहार अपने रहने की व्यवस्था कर संकू !
ब्राहमण के प्रशन ने राजा जनक के हृदय को झकझोर दिया १ उन्हें लगा की वास्तव में मेरा जब अपने शारीर पर ही कोई अधिकार नहीं है तो मैं भूमि पर अधिकार केसे जमा सकता हूँ ! राज्य को अपना मानना निरा भ्रम भी ही तो है !
जनक जी ने हाथ जोड कर कहा ब्राहमण देवता वास्तव में मैं अपने राज्य की सीमा बताने में असमर्थ हूँ ! मैं यह भी जान गया हूँ किं राज्य को अपना बताना मेरा अहम् तथा भ्रम मात्र था ! राज्य तो क्या शारीर भी मेरा नहीं है ! मैं भूलवश निष्कासन का आदेश देने के लिए आपसे क्षमा चाहता हूँ !
देखते ही राजा समाधि में खो गए ! उस दिन से उन्हें राज्य धन परिवारसे पूरी विरक्ति तरह हो गई !
मेरा कुछ नहीं
Posted by :रौशन जसवाल विक्षिप्त
ON
Monday, May 04, 2009
11 comments


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achha hai gyanbardhak
ReplyDeleteachha hai gyanbardhak
ReplyDeleteब्लॉग जगत में आपका स्वागत है.
ReplyDeleteaalekh achha hai.......BADHAI
ReplyDeleteRoshan ji,
ReplyDeleteHindi ke chitthajagat men apka svagat hai.ye post to achchhee hone ke sath preranapad bhee hai.
HemantKumar
बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
ReplyDeleteyah bar hamer samajh aaye tab na, narayan narayan
ReplyDeleteज्ञान,त्याग ,तप नहीं श्रेष्ठता का जब तक पद पायेंगे......
ReplyDeleteप्राचीन संस्मरण याद दिलाने के लिए धन्यवाद
आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
ReplyDeleteचिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी
सच में येहाँ किसी का कुछ नहीं है. झूठा अहम लोगों को कहीं का नहीं छोड़ता. बहुत सुन्दर प्रसंग दिया है आपने. तेरामेरा कुछ भी नहीं अपना, फिर भी कश्मीर से कन्या कुमारी तक लोगों में जमीन हड़प की लालसा की सभी सीमा लोग पर कर गए हैं . आपकी ब्लॉग को मेरी शुभकामनायें
ReplyDeleteअरुण कुमार झा
बे्हतरीन रचना के लिये बधाई। यदि शब्द न होते तो एह्सास भी न होता। मेरे ब्लोग पर आपका स्वागत है। लिखते रहें हमारी शुभकामनाएं साथ है।
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