
मौत को यादगार बनाने की हसरत
Posted by :रौशन जसवाल विक्षिप्त
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Friday, July 10, 2009
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अमेरिकी पॉप स्टार माइकल जैक्सन ने मौत से पहले इच्छा जाहिर की थी कि उन्हें भव्य समारोह के बीच शान से दफनाया जाए। अपनी मौत को यादगार बनाने की यह हसरत नई नहीं है। हिमाचल के कई क्षेत्रों में अंग्रेजों की ऐसी कब्रें हैं जहां उन्हें उनकी इच्छा के अनुरूप दफनाया गया और उनकी मौत यादगार बन गई। वायसरॉय लॉर्ड एलेगन को उनकी इच्छा के अनुरूप ही धर्मशाला के मैक्लोडगंज और चंबा में पहला कुष्ठ रोग अस्पताल खोलने वाले डॉ. हचिसन को यहां दफनाया गया। प्रदेश में ऐसे कई उदाहरण हैं। प्रदेश पर्यटन विभाग अंग्रेजों की इसी यादगार को अब पर्यटन से जोड़ेगा। हिमाचल की मिट्टी में दफन सैकड़ों अंग्रेजों के वंशज पर्यटन विभाग की बदौलत अपने पुरखों की कब्रों के दीदार कर पाएंगे। पर्यटन विभाग ने सिम्रिटी टूरिज्म के नाम से एक योजना शुरू की है। इसके तहत प्रदेश के विभिन्न स्थानों में स्थित कब्रगाहों को संरक्षित कर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा।
शिमला, डलहौजी, कसौली और मैकलोडगंज में स्थित सिम्रिटी को पर्यटन निगम की वेबसाइट में डाला जाएगा। इन कब्रों में दफन अंग्रेजों के नाम-पते और लोकेशन भी वेबसाइट में डाली जाएगी। सिम्रिटी टूरिज्म के तहत प्रदेश में आने वाले पर्यटकों को पर्यटन निगम के होटलों में रियायत दी जाएगी। सभी कब्रिस्तानों में साइन बोर्ड लगाए जाएंगे। इसमें वहां दफन लोगों की पूरी जानकारी होगी। केंद्रीय पर्यटन विभाग और संस्कृति मंत्रालय ने राज्य सरकार को कब्रिस्तानों की दशा सुधारने को कहा है। केंद्र सरकार के आदेश के बाद पर्यटन विभाग प्रदेश के प्रमुख स्थानों में स्थित सिम्रिटी के डाक्यूमेंटेशन में लगा है। यह हर वर्ग के पर्यटकों के लिए नया आकर्षण होगा, खासतौर से उन पर्यटकों को जिनके पूर्वज यहां की मिट्टी में दफन हैं। चंबा में पहला कुष्ठ रोग अस्पताल अंग्रेज डॉ. जॉन हचिसन ने खोला था। डॉ. हचिसन ने पूरी उम्र चंबा में रहकर कुष्ठ रोगियों की सेवी की। उनकी दिली तमन्ना थी कि उन्हें चंबा में ही दफनाया जाए। उनके परिजनों ने उनकी यह ख्वाहिश पूरी की। उनकी ओर से बनाया गया अस्पताल अभी तक चल रहा है। वर्ष 1862 में भारत में आए ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड एलगिन को यह क्षेत्र स्कॉटलैंड की तरह लगा। वर्ष 1863 में अधिकारिक दौरे के दौरान एलगिन की बीमारी के कारण मौत हो गई। उनके क्षेत्र के प्रति लगाव के चलते उन्हें इस चर्च की कब्रगाह में दफनाया गया। यह प्रदेश की सबसे महत्वपूर्ण कब्रगाहों में से एक है। इसके संरक्षण का जिम्मा पुरातत्व विभाग के पास है। वर्ष 1905 में आए भीषण भूकंप में ब्रिटिश अधिकारियों और कर्मचारियों सहित मारे गए ब्रिटिश सैन्य जवानों की मौत के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने जिला मुख्यालय को यहां से शिफ्ट करने का निर्णय लिया था। ब्रिटिश शासन के दौरान मारे गए 400 के लगभग सैनिकों को यहीं दफनाया गया है। लॉर्ड एलगिन के पड़पोते एडम ब्रूस सहित अन्य परिजन भी यहां आकर श्रद्धांजलि अर्पित कर चुके हैं। पालमपुर और कांगड़ा में भी ब्रिटिश काल के कब्रिस्तान मौजूद हैं। कसौली स्थित सिम्रिटी 200 वर्ष पुरानी है, जिसमें ईस्ट इंडिया कंपनी के कई आला ऑफिसर और सैनिकों को दफन किया गया है। करीब तीन सौ साल पहले कसौली में अंग्रेजों ने छावनी स्थापित की थी।


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