सरदार वल्लभभाई पटेल से हम सभी परिचित हैं। देश की आजादी की लड़ाई और उसके बाद यहां की अलग-अलग रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने को लेकर उनके अमूल्य योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। उनके जीवन से जुड़ा एक किस्सा है। सरदार पटेल फौजदारी के वकील थे। उनका सिद्धांत था कि निर्दोष अभियुक्त को हर कीमत पर बचाया जाए। वे कोई भी केस हाथ में लेने से पहले उसका सूक्ष्म अध्ययन करते। जब उन्हें पूरा विश्वास हो जाता कि अभियुक्त निर्दोष है, तभी वे उसका मुकदमा लड़ने को तैयार होते। एक बार वे किसी फौजदारी केस की पैरवी कर रहे थे। मामला संगीन था। तनिक भी असावधानी से अभियुक्त को फांसी हो सकती थी। उसी समय किसी व्यक्ति ने उनके नाम का तार लाकर उनके हाथों में थमा दिया। उन्होंने जल्दी से तार पढ़ा और जेब में रखकर पुन: पैरवी करने लगे। अदालत का वक्त खत्म होने के बाद वे हड़बड़ी में बाहर निकले। यह देख उनके एक साथी वकील ने उद्विग्नता का कारण जानना चाहा। सरदार पटेल बोले - मेरी पत्नी का स्वर्गवास हो गया है। तार उसी बारे में था। साथी वकील बोला - कमाल है! इतना बड़ा हादसा हो गया और आप बहस करते रहे। तब पटेल बोले - मेरी पत्नी तो जा ही चुकी थी। क्या उसके पीछे उस निर्दोष अभियुक्त को भी फांसी पर चढ़ने के लिए छोड़ देता? सरदार पटेल की यह कत्र्तव्यनिष्ठा संकेत करती है कि बड़े से बड़े संकट में भी व्यक्ति को अपने कत्र्तव्य पालन से पीछे नहीं हटना चाहिए। कत्र्तव्यशीलता धैर्य को जन्म देती है और यही धैर्य विपत्तियों से लड़ने का साहस देता है।
धैर्य
Posted by :रौशन जसवाल विक्षिप्त
ON
Friday, July 24, 2009
4 comments


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बहुत सही .. र्धर्य ही विपत्तियों से लडने का साहस देता है !!
ReplyDeletebahut hi sahi hai dhairya bipatiyo me himmat badhata hai ........bahut hi sundar......
ReplyDeleteप्रेरक प्रसंग!!
ReplyDeleteUltimate Boss !! Could one ever achieve this ? It's ultimate to the point of being absurd. But that's perhaps why HE IS THE "LAUH PURUSH"
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