भूली बिसरी गलियां


मिसेज़ शर्मा घर से जब चलने लगीं, तो बच्चों ने कहा, मम्मी आप मुरैना घूमने जा रही हैं, तो इस बार मथुरा, वृंदावन, गोकुल, यमुना जी सबके दर्शन कर आईएगा। पिछली बार जब आप गई थीं तो गर्मी का मौसम होने के कारण आप सभी जगहों पर नहीं जा पाई थीं। अब तो मौसम अच्छा है, न अधिक सर्दी है न गर्मी। यह सुनकर मिसेज़ शर्मा के मन को अति प्रसन्नता हुई। अमृतसर से मुरैना के लिए ए. सी. कोच में रिजर्वेशन पहले ही करवा रखी थी, परंतु सीट कन्फर्म नहीं हुई थी। यात्रा से एक दिन पहले ही अचानक घुटने में मोच आ गई जिस कारण चलने-फिरने, उठने-बैठने में भी भारी कष्ट हो रहा था। ऐसे में रात को पता चला कि सीट कन्फर्म हो गई है, फ़िर तो घुटने की तकलीफ़ होने पर भी वे अगली सुबह ट्रेन में सवार हो गईं कि चलो इसी बहाने बांके बिहारी के दर्शन होंगे। अमृतसर से जब मुरैना भईया के घर पहुँचीं तो वहाँ घुटने की तकलीफ़ और बढ़ गई। ख़ैर वहाँ डॉक्टर से चेक अप करवाया और टेस्ट वगैरह करवाए तो मालूम हुआ कि घुटने की माँसपेशियां ही फट गई हैं। अब ठीक होने में वक्त लगेगा, बेड रेस्ट करना होगा। ऐसे में तीर्थ यात्रा तो होने से रही। फ़िर देखते ही देखते अमृतसर लौटने की तारीख़ भी क़रीब आती गई। कहीं और जा पाने की शारीरिक स्थिति में वे थी नहीं। वहाँ जाकर भी पास ही विजयपुर में छोटे भाई से मिलने नहीं जा सकीं। सोचा उसे यहीं मुरैना बुला लूं। फोन किया तो भाई ने आने में असमर्थता जताई । उसकी बेटी भी बीमार थी और उसके अपने भी घुटनों में तकलीफ़ थी। उनको बुरा लगा कि देखो भाई ने आने से मना कर दिया और शायद भाई को बुरा लगा होगा कि इतनी दूर पंजाब से एक भाई के पास आकर वे दूसरे भाई के घर नहीं आ सकती क्या ? फ़िर अचानक दो दिन बाद उसे हार्ट अटैक होने की ख़बर आई। सुन कर किसी को भी विश्वास नहीं हो रहा था। सब आपस में काना-फूसी कर रहे थे परंतु मिसेज़ शर्मा को कोई कुछ बता नहीं रहा था। जब ख़बर की पुष्टि हो गई तो उन्हें भी बता दिया गया। वे बड़े भाई- भाभियों के साथ जब छोटे भाई के घर पहुँचीं तो भाई को देख उन्हें लगा मानो सो रहा है। उसकी मुस्कराहट से ऐसा लग रहा था मानो अभी उठ बैठेगा। पाँच बच्चों का बाप होते हुए भी, आख़िरी समय में कोई भी पास न था। दो बेटे नौकरियों के सिलसिले में पड़ोसी प्रांतों में थे। एक बिटिया ससुराल में थी। और छोटा बेटा, छोटी बिटिया को डॉक्टरी चेक अप के लिए ग्वालियर लेकर गया हुआ था। भाई को ऐसी हालत में देख मिसेज़ शर्मा की नज़रों के सामने फ्लैशबैक की तरह फ़िल्म सी चलने लगी। पाँच भाईयों में से एक-एक कर बड़े तीन भाई और बड़ी बहन तो पहले ही चल बसे थे, यह सबसे छोटा, जिसे गोद में खिलाया वह भी पहले ही चलता बना। पंजाब के एक छोटे से गांव में जन्मा वह जब छोटा था तो सभी उसे प्यार से काका कह कर पुकारते थे। वह पिता के पास दुकान पर जा बैठता और लोगों की बातें सुना करता। यह वह समय था जब अंग्रेजों की कूटनीति से हिन्दू और मुसलमानों का आपस में झगड़ा-फ़साद हो रहा था। कहाँ तो हिन्दू -मुस्लिम कितने प्यार से रहा करते थे और अब एक दूसरे के ख़ून के प्यासे हो गए थे। तिस पर सिक्ख जत्थे लेकर आ जाते कि यदि हिन्दुओं ने मुसलमानों की सहायता की तो तलवार से काट दिए जाएंगे, जिस कारण हिन्दू भी मदद करने में असमर्थ थे। जब तब वे जत्था लेकर आ जाते थे, तब काका दुकान से दौड़ कर घर भाग जाता था। रास्ते में आते-आते हल्ला करता आता, लोगो दरवाज़ा बंद कर लो जत्था आ गया है। उसका शोर सुनकर लोग दरवाज़े बंद कर लेते थे और वह अपने घर आकर दरवाज़ा बंद कर माँ की गोद में बैठ कर रोने लगता कि माँ हम सब यहाँ बैठे हैं, मेरा भाजी (सबसे बड़ा भईया) कहाँ है, वह कब आएगा। यह सुनकर सारे घर वाले भी रोने लगते क्योंकि उस घर का बड़ा बेटा यानी काके का भाजी काश्मीर की सरहद पर युद्ध में गया हुआ था(जिस समय देश विभाजन हो रहा था)। बहुत दिनों तक काके के भाजी का पत्र नहीं आया, जिस कारण घर वाले परेशान और दुखी रहते थे। माँ तो पागलों जैसी हो गई थी, पिता बेटे की कुशलता जानने के लिए मिलिट्री कमांडर को कभी पत्र तो कभी तार भेजते। जवाब न आने पर सभी निराश हो जाते। ऐसी स्थिति में घर में
कभी-कभी खाना नहीं बनता था, और यदि बन जाता तो कोई ठीक से खाता भी नहीं था। रात को सब लोग गली बाज़ारों में पहरा देते थे। हर घर से एक आदमी पहरे के लिए जाता था, घर के आसपास सब तरफ मुसलमानों के घर थे, जिस कारण हर समय भय लगा रहता कि कहीं कोई आग न लगा दे। रात को गली मुहल्ले की औरतें भी अपने घर की छत पर घूम-घूम कर पहरा देती थीं, ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ें लगातीं – ‘जागते रहो, भई जागते रहो।’

आख़िर एक दिन देश का बंटवारा हो गया। सारे मुसलमान परिवारों को गाँवों और शहरों से निकाल दिया गया। जो जहां-जहां जाना चाहते थे वहां उन्हें भेज दिया गया और पाकिस्तान से हिन्दू परिवार भारत में आ गए। एक दिन काका खुशी से उछलता-कूदता दौड़ा-दौड़ा घर आया कि मेरे भाजी की चिट्ठी आई है। वह काश्मीर की लड़ाई जीत कर वापस घर आ रहा है। जिस दिन भाजी युद्ध जीत कर घर आया पूरे गांव वालों की खुशी का ठिकाना नहीं था। सबने भाजी का स्वागत किया और गले में फूलों के हार डाले। भाजी की जीत और सही सलामत घर लौटने पर बधाई देने आने वालों का घर पर तांता लग गया। उस समय भाजी की दादी और माँ ने परातें भर-भर की सक्कर(गुड़ की) बांटी और खुशियां मनाईं। तब काका भाजी की गोद में बैठकर प्रसन्नता से उछलने लगा। सब भाई बहनों ने एक साथ आनन्द मनाया। सभी भाजी से काश्मीर के किस्से सुनते और रोमांचित हो उठते। काका जो सब का प्यारा और दुलारा था, आज परलोक की यात्रा पर निकल गया। मिसेज़ शर्मा की आँखों से आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे क्योंकि वह तो तीर्थ यात्रा की सोच लेकर निकली थी और भाई यह कैसी यात्रा पर निकल गया ? पंजाब में जन्मा, पला-बढ़ा और एम. पी. में अधिकारी के पद से रिटायर हो वहीं की शमशान भूमि की तरफ बढ़ गया, जो अब कभी वहाँ से वापस नहीं आएगा, कभी मिलने नहीं आएगा। कभी नहीं।
- आशा रानी शर्मा



(कहते हैं कि जिजीविषा हो तो कुछ भी असंभव नहीं। प्रस्तुत है एक ऐसी प्रथम रचना जो किसी की जीवन यात्रा के 70 वा साल पूर्ण होने से कुछ दिनों पूर्व लिखी गई। आज से लगभग पचास-पचपन वर्ष पूर्व पंजाब के एक गांव से महज़ प्राइमरी स्तर की शिक्षा प्राप्त श्रीमती आशा रानी शर्मा की हाल ही में लिखी गई है यह रचना। पढ़ने में रुझान रखने वाली श्रीमती शर्मा के हृदय से भी लेखन की कोंपल फूट पड़ी है। लीजिए हाज़िर है उनके द्वारा लिखित यह भावुक रचना। हो सकता है इनसे कुछ और लोगों को भी प्रेरणा मिल जाए। अपने विचारों से अवश्य अवगत करवाएं, हमें इंतज़ार रहेगा।)




प्रस्तुति – संस्कृति सरोकार परिवार !



साभार - समवेत स्वर.ब्लॉगस्पॉट.कॉम


Posted by संस्कृति सरोकार / Samskriti Sarokaar 1 comments:
MANOJ KUMAR said...
वेदना, करुणा और दुःखानुभूति को उजागर करती रचना, बधाई।

October 6, 2009 9:15 AM

1 comments:

  1. kuhu kahti hai dadi maama bahut badhiya. apney papa ko bhi achi yaad sogat di hai

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