ओशो अपने भक्तों को एकाग्रचित्त होकर ध्यान करने की प्रेरणा दिया करते थे। एक दिन एक अनुयायी ने उनसे पूछा, ‘महात्मन, डाइनमिक मेडिटेशन करते समय मुझे राहत मिलने की जगह भारी थकान की अनुभूति होने लगी है। छह माह इस विधि से ध्यान करते हो गए, किंतु अभी तक सुखद लक्षण नहीं दिखाई दिए।’
ओशो ने कहा, ‘मैंने पहले ही कहा था कि परिणाम की चिंता न करके पूरी तन्मयता से ध्यान का अभ्यास करो। महीनों में नहीं, तो कभी-कभी कई वर्षों बाद ध्यान के सुपरिणाम सामने आते हैं। इसलिए श्रीकृष्ण ने निष्काम कर्म का महत्व बार-बार प्रतिपादित किया है। यदि आदमी निराश प्रवृत्ति का होगा, तो वह थककर बीच में ही सत्कर्म छोड़ भागेगा।’
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, ‘यदि हम सूर्य की रोशनी और ठंडी वायु का आनंद उठाना चाहते हैं, तो हमें कमरे का दरवाजा, खिड़की आदि खोलकर रखनी चाहिए। फिर सूर्य की किरणों व वायु का स्वतः आभास होने लगेगा। कई बार बादलों से आच्छादित रहने के कारण कुछ स्थानों पर महीनों सूर्य के दर्शन नहीं हो पाते। ऐसे में, क्या निराश होकर हमें खिड़की या द्वार हमेशा के लिए बंद कर देने चाहिए? जैसे हम द्वार खोल सकते हैं और सूर्य की किरणों का पहुंचना सूर्य पर निर्भर है, उसी तरह हम ध्यान का अभ्यास निरंतर करते रहें और आशा रखें कि एक न एक दिन हम उससे लाभान्वित होंगे। निराशा छाते ही महीनों के हमारेअभ्यास का श्रम निरर्थक हो जाता है। इसलिए मैं प्रत्येक साधक को निष्काम ध्यान में लगे रहने की प्रेरणा देता हूं
निष्काम ध्यान
Posted by :मानसी
ON
Saturday, May 15, 2010
No comments


THANKS FOR VISIT
आप अपनी रचनाएं भेज सकते हैं

0 comments:
Post a Comment