महर्षि सनतकुमार और देवर्षि नारद सत्संग कर रहे थे। सनतकुमार ने प्रश्न किया, ‘देवर्षि, आपने किन-किन शास्त्रों और विद्याओं का अध्ययन किया है?’ नारद जी ने उन्हें बताया कि उन्होंने वेदों, पुराणों, वाकोवाक्य देवविद्या, ब्रह्मविद्या, नक्षत्र विद्या आदि का अध्ययन किया है। पर उनका ज्ञान मात्र पुस्तकीय है। नारद जी ने विनयपूर्वक महर्षि से ब्रह्मविद्या का ज्ञान कराने की प्रार्थना की। महर्षि सनतकुमार ने उपदेश देते हुए बताया, ‘वाणी, मन, संकल्प, चित्त, ध्यान, विज्ञान, प्राण आदि पंद्रह तत्वों को जानना चाहिए। सत्य, मति कर्मण्यता निष्ठा तथा कर्तव्यपरायणता आदि का ज्ञान प्राप्त करने से आत्मिक सुख मिलता है।’ उन्होंने कहा, ‘सच्चा सुख तो परमात्मा की सर्वव्यापकता की अनुभूति होने पर ही प्राप्त होता है। इस अनुभूति के होने पर मनुष्य यह स्वीकार कर लेता है कि सारा संसार ही उसका परिवार है-वसुधैव कुटुंबकम्। जब हमारा दृष्टिकोण व्यापक हो जाता है, तो हम प्राणी मात्र में अपने परमात्मा के दर्शन कर सभी के प्रति सुहृद के समान व्यवहार करते हैं।’ धर्मशास्त्रों में कहा गया है, ‘परमात्मा सर्वत्र है। वह सर्वशक्तिमान है। वह नित्य, पवित्र और प्रेम का प्रतीक है। जिसे परमात्मा के प्रति असीम निश्छल प्रेम की अनुभूति होने लगती है, उसका हृदय-मन पूरी तरह सांसारिक आसक्ति से रहित हो जाता है। जीव जब संसार की वासनाओं और क्षणिक आकर्षणों में भटककर थक जाता है, तब उसे परमात्मा की शरण में जाकर ही परम शांति व सुख प्राप्त होता है।’ |
परम शांति
Posted by :मानसी
ON
Saturday, July 17, 2010
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