अहंकार

राजगृह के  कोषाध्यक्ष की पुत्री भद्रा बचपन से ही प्रतिभाशाली थी।  माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध  विवाह कर लिया। विवाह के बाद उसे पता चला कि    वह युवक दुर्व्यसनी और अपराधी किस्म का है। एक दिन उस युवक ने भद्रा के तमाम आभूषण कब्जे में ले लिए और उसकी हत्या का प्रयास किया। पर भद्रा ने युक्तिपूर्वक अपनी जान बचा ली। इस घटना ने उसमें सांसारिक सुख से विरक्ति की भावना पैदा कर दी। वह भिक्षुणी बन गई। अल्प समय में ही उसने शास्त्रों का अध्ययन कर लिया और उसकी ख्याति विद्वान साध्वियों में होने लगी। भद्रा को अहंकार हो गया कि वह सबसे बड़ी शास्त्रज्ञ है। उसने पंडितों को शास्त्रार्थ के लिए ललकारना शुरू कर दिया। एक बार वह श्रावस्ती पहुंची। उसे पता चला कि अग्रशावक सारिपुत्र प्रकांड पंडित माने जाते हैं। भद्रा ने सारिपुत्र को शास्त्रार्थ की चुनौती दे डाली। उसने सारिपुत्र से अनेक प्रश्न किए, जिसका सारिपुत्र ने जवाब दे दिया। अंत में सारिपुत्र ने उससे प्रश्न किया, ‘वह सत्य क्या है, जो सबके लिए मान्य हो?’ भद्रा यह सुनते ही सकपका गई। पहली बार उसने किसी विद्वान के समक्ष समर्पण करते हुए कहा, ‘भंते, मैं आपकी शरण में हूं।’ सारिपुत्र ने उत्तर दिया, ‘मैं बुद्ध की शरण में हूं, उनका शिष्यत्व ग्रहण करो।’ भद्रा बुद्ध के पास पहुंची। बुद्ध ने उसे उपदेश देते हुए कहा, ‘देवी, किसी भी प्रकार का अहंकार समस्त सद्कर्मों व पुण्यों को क्षीण कर देता है। धर्म के केवल एक पद को जीवन में ढालो कि मैं ज्ञानी नहीं, अज्ञानी हूं।’ तथागत के शब्दों ने भद्रा को पूरी तरह अहंकारशून्य बना दिया

2 comments:

  1. आभार इन विचारों का.

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  2. उम्दा व प्रेरक प्रस्तुती,वास्तव में अहंकार ही इन्सान के पतन का सबसे बड़ा कारण है |

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The power to guess the unseen from the seen, to trace the implications of things, to judge the whole piece by the pattern, the condition of feeling life in general so completely that you are well on your way to knowing any particular corner of it—this cluster of gifts may almost be said to constitute experience.
Henry James
(1843-1916)
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