हम लौट आएंगे, तुम यूं ही बुलाते रहना.....

मध्य प्रदेश का खंडवा शहर। 4 अगस्त 1929 को शहर के मशहूर वकील कुंजलाल गांगुली के घर तीसरे पुत्र का जन्म। कहते हैं वकील साहब के इस पुत्र की आवाज़ बड़ी कर्कश थी। बड़ा शरारती बच्चा हुआ करता था। दिन भर माँ को परेशान किए रखता। एक दिन उछलते-कूदते रसोई घर में आ घुसा। माँ सब्ज़ी काटना छोड़ किसी काम से दूसरे कमरे में गई हुई थीं। सब्ज़ी काटने वाली दराती सीधी पड़ी थी जिस पर उस बच्चे की नज़र नहीं पड़ी। उससे उसके बाँए पाँव की तीसरी उंगली कट गई। परिणामस्वरूप वह दिन भर रोया करता था। यहाँ तक कि नींद में भी सिसक उठता। चौबीस घंटों में क़रीब बीस-बाईस घंटे तो वह रोया करता था। क़रीब एक महीने बाद वह घाव ठीक हुआ। लगातार महीना भर रोते रहने के कारण अचानक उस बच्चे की आवाज़ की कर्कशता गायब हो गई और सुरीलापन आ गया।



यही बच्चा आगे चलकर गायक, निर्माता, निर्देशक, अभिनेता के रूप में मशहूर हुआ। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं एक हरफनमौला, मस्तमौला कलाकार आभास कुमार गांगुली उर्फ़ किशोर कुमार की। इंदौर से कॉलेज की पढ़ाई ख़त्म कर किशोर कुमार बड़े भाई अशोक कुमार के पास बंबई चले आए। अशोक कुमार उन दिनों बॉम्बे टॉकीज़ के प्रोड्यूसर थे। उन्होंने किशोर कुमार से अभिनय के बारे पूछा तो किशोर कुमार का जवाब था कि वे गायक बनना पसंद करेंगे। अंतत: गायन का अभ्यास शुरू हुआ। 1948 में बॉम्बे टॉकीज़ की फ़िल्म ‘ज़िद्दी’ के लिए उन्हें पहला ब्रेक मिला। लता मंगेशकर के साथ उनका पहला युगल गीत था – ‘ये कौन आया’। इसी फ़िल्म में उनका पहला एकल गीत था, ‘मरने की दुआएं क्यूं मांगू, जीने के तमन्ना कौन करे’फ़िल्म ज़िद्दी के लिए गाए गीतों में कुंदन लाल सहगल साहब की झलक मिलती है। किशोर कुमार सहगल साहब के ज़बर्दस्त फैन रहे। बचपन में जब भी घर में मेहमान आते तो पिता नन्हें किशोर कुमार को गीत सुनाने के लिए कहते। जवाब में किशोर कुमार पूछते, कौन सा ? दादा मोनी का या सहगल साहब का। गीत सुनाने के एवज़ में नन्हें किशोर को पिता पुरस्कार स्वरूप पैसे दिया करते थे। दादा मोनी के गीत का रेट था चार आने और सहगल साहब के गीत का एक रुपया।


अपने 40 साल के फ़िल्मी सफ़र में किशोर कुमार ने लगभग तीन हज़ार गीत गाए। 72 फ़िल्मों में अभिनय किया। बतौर निर्माता चलती का नाम गाड़ी( 1958), झुमरू (1961), दूर का राही(1971), बढ़ती का नाम दाढ़ी(1974) और शाब्बाश डैडी(1978) का निर्माण किया। पहली फ़िल्म को छोड़ शेष सभी फ़िल्मों में उनका अपना संगीत था। अपने द्वारा निर्मित फ़िल्मों के अलावा उन्होंने दूसरी फ़िल्मों में संगीत नहीं दिया।


उन्होंने हर अभिनेत्री के साथ नि:संकोच काम किया। अभिनेत्री कुमकुम के साथ सर्वाधिक काम किया। किशोर कुमार की मुख्य भूमिका वाली लूकोचूरी, न्यु दिल्ली, भाई-भाई और आशा इन चार फ़िल्मों ने स्वर्ण जयंती मनाई। अधिकार, चलती का नाम गाड़ी, लड़की, पहली झलक, प्यार किए जा, दिल्ली का ठग, इल्ज़ाम, चंदन, बेवकूफ़, शरारत आदि फ़िल्मों ने रजत जयंती मनाई।


किशोर कुमार, अशोक कुमार व अनूप कुमार तीनों भाईयों ने 1957 में पहली बार एक साथ सत्येन बोस के निर्देशन में फ़िल्म बंदी में अभिनय किया। किशोर कुमार विश्व के अकेले एकमात्र ऐसे गायक हैं जिन्होंने पुरुष व महिला स्वर में खुद ही चार युगल गीत गाए हैं। वे गीत हैं – आके लगी सीधी दिल पे (हाफ टिकट-1962)/अरे वाह रे मालिक(हाफ टिकट)/ सुणिए सुणिए आजकल की(लड़का-लड़की-1966)/लड़कियों का परोगराम(रंगीली – 1952) लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब फ़िल्म रागिनी और शरारत में रफ़ी साहब ने किशोर कुमार के लिए गायन किया। हुआ यूं कि 1954 में अशोक पिकचर्स, बॉम्बे के बैनर तले फ़िल्म रागिनी बन रही थी। नायक थे किशोर कुमार और नायिका पद्मिनी। ओ. पी. नैय्यर साहब ने किशोर कुमार और आशा भोंसले की आवाज़ों में चार गीत तो रिकॉर्ड कर लिए परंतु एक एकल गीत था जो किशोर कुमार पर फ़िल्माया जाना था। गीत के बोल थे – ‘मन मोरा बाबरा, निस दिन गाए गीत मिलन के।’ गीत शास्त्रीय था और किशोर कुमार हरफ़नमौला। परंतु नैय्यर साहब के मन के मुताबिक बात नहीं बन रही थी। कई रीटेक होने के बाद किशोर साहब को रफ़ी साहब की आवाज़ लेनी पड़ी। इसी तरह फ़िल्म शरारत में दो एकल और गीता दत्त के साथ दो गीत शंकर-जयकिशन ने रिकॉर्ड कर लिए परंतु ‘अजब दास्तां तेरी ये ज़िंदगी’ गीत में कई रीटेक देने के बाद किशोर कुमार नं स्वयं शंकर-जयकिशन से कहा कि आप ये गीत रफ़ी साहब से गवा लीजिए। दोस्तो, इससे एक बात स्पष्ट होती है कि उन दिनों कलाकार एक-दूसरे का कितना सम्मान करते थे, भले ही वे कंपीटीटर क्यों न हों।


सचिन देव बर्मन के संगीत निर्देशन में उन्होंने देव आनंद जी के लिए फ़िल्म ‘बाजी’ में गाया। बाद में सचिन देव बर्मन, किशोर कुमार और देव आनंद की त्रयी ने कई इतिहास रचे। तीन देवियां, गैंबलर, फंटूश, प्रेम पुजारी जैसी फ़िल्में फ़िल्म इंडस्ट्री को दीं। फ़िल्म जगत में एकमात्र किशोर कुमार ऐसे शख्स थे जो गायक व नायक के रूप में समान रूप से सफल हुए। छठे दशक में मु. रफ़ी, मुकेश, तलत महमूद, हेमंत कुमार, मन्ना डे बुलंदियों पर थे परंतु 1969 में फ़िल्म ‘आराधना’ ने तो मानों चमत्कार ही कर दिया। ‘मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू’ गीत से वे लोगों के दिलों की धड़कन बन गए। इस फ़िल्म से किशोर कुमार की लोकप्रियता काफ़ी बढ़ गई। छठे दशक में रफ़ी शम्मी कपूर और दिलीप कुमार के तथा मुकेश राज कपूर व मनोज कुमार के पर्याय बन गए थे, उसी प्रकार 1969 से 1987 तक किशोर कुमार देव आनंद, राजेश खन्ना और अमिताभ का ट्रेड मार्क बन गए। दरअसल राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन को किशोर कुमार के गायन ने ही स्टारडम तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


किशोर कुमार की सचिन देव बर्मन से अच्छी पटती थी। देव आनंद फ़िल्म गाईड का शीर्षक गीत सचिन देव से गवाना चाहते थे। उन्हें राज़ी करवाने का जिम्मा उन्होंने किशोर को दिया। किशोर कुमार का गाया गीत, ‘गाता रहे मेरा दिल’ बर्मन साहब को बहुत पसंद था। एक दिन घर बुलाकर उन्होंने किशोर कुमार के उस गीत की काफ़ी प्रशंसा की। किशोर कुमार बर्मन साहब के चरण पकड़ ज़मीन पर लेट गए और कहा कि मुझे एक वर चाहिए। सचिन देव अपना पाँव किसी भी तरह नहीं छुड़ा पा रहे थे। विवश होकर उन्होंने कहा – अच्छा बताओ, क्या चाहते हो ? तो किशोर कुमार ने गाईड का शीर्षक गीत गाने की माँग रखी और बर्मन साहब को राज़ी होना पड़ा।


हिन्दी फ़िल्मों में नाम कमाने के बाद उन्होंने 1970 में बांग्ला फ़िल्मों के लिए पार्शव गायन किया। पहली बार महानायक उत्तम कुमार के लिए फ़िल्म ‘राजकुमारी’ में ‘बौंदो घौरे औंधों होए थाकबो ना’ गीत गाया। इस गीत ने काफ़ी लोकप्रियता पाई। 1964 में स्वयं किशोर कुमार ने लूकोचूरी का निर्माण किया। इसमें उन्होंने गायन के साथ-साथ अभिनय भी किया। फ़िल्म सुपरहिट रही। उनके बांग्ला गीतों में आमार नाम ऐंटोनी(मदर),कारो केउ नौई गो आमी(लालकूठी), बिपिन बाबूर कारोन शुधा(अमानुष), काली रामेर ढोल(अनुंसंधान) एई जो नोदी जाए शागोरे/नयनो सौरोसी कैनो भोरेछे जौले और रवीन्द्र संगीत काफ़ी लोकप्रिय हुए।


किशोर कुमार को लोग पागल, कंजूस, सनकी और पता नहीं क्या-क्या कहा करते थे।किशोर कुमार की फ़िल्म प्यार अजनबी है में लीना चंद्रावरकर नायिका थीं। अचानक वे लीना जी के मेक रूम में घुस आए और बोले, लीना तुम जानती हो लोग मुझे पागल कहते हैं। लीना ने कहा, नहीं तो। वे बोले, तुमने कभी कुछ सुना नहीं। लीना के इन्कार करने पर वे लपक कर सोफ़े पर चढ़ बैठे और फिर हाथ-पैरों से कुत्ते की भंगिमा बना कर उसकी आवाज़ निकालनी शुरू की। लीना जी तो चकित रह गईं। उनके मुँह से अचानक निकल पड़ा, तो लोग ठीक ही कहते हैं। अच्छा तो तुम्हें पता है। फिर हंस कर किशोर कुमार ने कहा, तो समझीं, मैं ये सब जान-बूझकर करता हूँ। कभी-कभी लोगों को दूर भगाने के लिए मैं पागलपन करता हूँ।


किशोर कुमार को पेड़-पौधों से काफ़ी लगाव था। पक्षियों और पेड़-पौधों के उन्होंने अलग-अलग नाम रखे थे। किशोर कुमार पत्रकारों और आयकर वालों को काफ़ी दौड़ाते थे। अग्रिम राशि लिए बिना वे गाते नहीं थे, पेट दर्द का बहाना बना घर आ जाते थे। दरअसल दुनिया के धोखे और चालाकियों ने ही उन्हें ऐसा करने पर मजबूर कर दिया था।



एक बार किशोर कुमार बांग्ला फ़िल्मों की नायिका माधवी मुखोपाध्याय के घर ‘मूर एवेन्यू’ डिनर पा जा रहे थे। माधवी जी का ड्राईवर ही गाड़ी चला रहा था। कलकत्ते के भवानीपुर अंचल के एक क्रॉसिंग पर सिग्नल न मिलने के कारण गाड़ी रुकी हुई थी। किशोर कुमार ड्राईवर के साथ वाली सीट पर सामने ही खिड़की के पास बैठे हुए थे। उनकी गाड़ी की बगल में एक टैक्सी आ कर रुकी। एक सरदार जी चालक की सीट पर थे। अचानक किशोर कुमार ने देखा कि सरदार जी अवाक होकर उन्हें देख रहे थे। उन्होंने तुरंत खिड़की से मुंह बाहर निकाल कर कहा, ‘मैं देखने में किशोर कुमार जैसा हूँ न। ड्राईवर हैरान होकर उन्हें देखे जा रहा था। किशोर कुमार ने कई तरह की भाव-भंगिमाएं बनाते हुए कहा, तुम विश्वास नहीं कर रहे हो न ? सच कह रहा हूँ, मैं किशोर कुमार नहीं हूँ। तब ये मान सकते हो कि मैं उनका डुप्लीकेट हूँ। इसके लिए मुझो कितनी परेशानी झेलनी पड़ती है।‘ अंतत: किशोर कुमार की बातों से टैक्सी चालक को यकीन हो गया कि वे किशोर कुमार नहीं है और उसने मुँह घुमा लिया तथा सिग्नल के हरा होने का इंतज़ार करने लगा। जैसे ही सिग्नल मिला किशोर कुमार की गाड़ी चलनी शुरु हो गई। उसी वक्त चलती गाड़ी से मुंह निकाल कर उन्होंने कहा – ‘सरदार जी, देखा कैसे मूर्ख बनाया आपको। मैं ही हूँ असली किशोर कुमार। डुप्लीकेट-डुप्लीकेट कुछ नहीं हूँ।’


कहते हैं किशोर कुमार शिक्षक बनना चाहते थे। वे कहा करते थे कि काश, मैं किसी स्कूल में चित्रकारी सिखाने वाला मास्टर किशोरी लाल होता।


1951 में किशोर कुमार ने रूमा गुहाठाकुरता (अभिनेत्री और गायिका) से शादी की। फिर 1958 में मधुबाला से, तीसरी बार योगिता बाली और मार्च 1980 में लीना चंद्रावरकर से। लेकिन किशोर कुमार का कहना था कि पहली तीनों बार तो रूमा, मधुबाला और योगिता ने मुझसे शादी की थी, मैंने तो एक ही बार शादी की है लीना से।


लता मंगेशकर पुरस्कार के समय वे अनूप कुमार और अशोक कुमार के साथ इंदौर गए। उस दिन किशोर सारी रात गाते रहे। दर्शकों से उन्होंने पूछा, कब तक बैठेंगे आप ? सभी दर्शकों ने ज़ोरदार आवाज़ में कहा, आपके लिए तो हम सारी रात इंतज़ार करेंगे। किशोर कुमार ने जवाब दिया, तो मैं सारी रात गाऊंगा और वे सारी रात गाते रहे थे। अपने स्टेज कार्यक्रमों की शुरूआत वे, ‘मेरे दादा-दादियो, मेरे नाना-नानियो, चाचा-चाचियो, भईया-भाभियो आप सबको खंडवा वाले किशोर कुमार गांगुली का प्रणाम’ इन शब्दों से करते थे। और श्रोताओं की तालियों के जवाब में थैक्यू, धन्यवाद, शुक्रिया, मेहरबानी जैसे संबोधन भी वे गाकर करते थे।


कहते हैं किशोर कुमार ने जब जुहू के अपने ‘गौरीकुंज’ बंगले में रहना शुरु किया तो उन्हें एक सपना आया करता था कि वे गोवा के एक चर्च में फादर हैं और ईसा मसीह के सामने प्रार्थना कर रहे थे। धार्मिक उत्सवों में प्रवचन कर रहे हैं। लोग नतमस्तक होकर उन्हें सुन रहे हैं। बस यहीं आकर रोज़ उनकी नींद खुल जाती। एक दिन उन्होंने बड़े भाई अशोक कुमार से बात की। उनकी सलाह पर वे गोवा गए। काफ़ी दिनों तक घूमने के बाद उन्हें गोवा में वैसा चर्च मिल गया, जैसा सपने में नज़र आता था। वहाँ से लौट कर वे सीथे वर्सोवा बीच पर बने कब्रिस्तान मे गए। वहाँ वे एक कब्र के पास गए और देखा कि उस पर लिखा था, फादर जॉर्ज ब्राउन, जन्म-13 अक्तूबर 1887 : मृत्यु 4 अगस्त 1929 । संयोग की बात देखिए कि जिस दिन फादर की मृत्यु हुई उस दिन किशोर कुमार का जन्म हुआ। फादर का जन्म हुआ था 13 अक्तूबर 1887 को और ठीक 13 अक्तूबर 1987 को किशोर कुमार का निधन हुआ।


12 अक्तूबर 1987 को निर्माता निर्देशक कीर्ती कुमार की फ़िल्म हत्या के लिए संगीतकार बप्पी लहरी के निर्देशन में इंदीवर के लिखे गीत – ‘मैं तू हूँ सबका, मेरा न कोई, मेरे लिए न कोई आँख रोई,’ की उन्होंने रिहर्सल की और 14 अक्तूबर को इसकी रिकॉर्डिंग थी। 13 अक्तूबर को बड़े भाई अशोक कुमार का जन्म दिन था, इसलिए उस दिन उन्होंने छुट्टी ले रखी थी। शाम को वे सपरिवार, दोस्तों-मित्रों के साथ दादा मोनी का जन्म दिन मनाने वाले थे। क़रीब साढ़े तीन बजे उन्हें दिल का दौरा पड़ा और पल भर में ही सबकी आँखों में आँसू छोड़ वे अनंत यात्रा पर निकल गए। ‘चलते-चलते मेरे ये गीत याद रखना, कभी अलविदा न कहना’ या ‘हम लौट आएंगे, तुम यूं ही बुलाते रहना’ कहने वाले किशोर कुमार सबको अलविदा कह गए। फ़िल्म ‘वक्त की आवाज़’ में मिठुन और श्रीदेवी के लिए इंदीवर रचित गीत ‘आ जाओ गुरु, प्यार में डूब जाओ गुरु’ उनका गाया अंतिम गीत था।



कुछ अन्य उल्लेखनीय तथ्य :-



0 किशोर कुमार की फ़िल्म ‘दूर वादियों में कहीं’ में वे खुद ही नायक थे परंतु यह पूर्णत: गीतरहित फ़िल्म थी।

0 1977 में बनी फ़िल्म ‘अमर अकबर एन्थनी’ का गीत ‘हमको तुमसे हो गया है प्यार’ ने हिन्दी फ़िल्म जगत में इतिहास रचा। मु। रफ़ी, मुकेश, किशोर कुमार और स्वर साम्राज्ञी कहलाने वाली लता मंगेशकर इन चार महान कलाकारों तथा दिग्गजों द्वारा एक साथ गाया हुआ यह एकमात्र गीत है। इसके बाद इन्हें एक साथ गाने का मौका नहीं मिला। इस गीत में परवीन बॉबी की आवाज़ भी है।

0 हिन्दी फ़िल्मों में शीर्ष स्तरीय नायक होते हुए भी फ़िल्म ‘मिस मेरी’ में उन्होंने अभिनेत्री रेखा के पिता जैमिनी गणेशन के साथ सहनायक की हास्य भूमिका की थी।

0 1948 में बॉम्बे टॉकीज़ की ‘ज़िद्दी’ बतौर पार्शव गायक उनकी पहली फ़िल्म थी। इसमें उन्होंने पहली बार देव आनंद के लिए गाया और फ़िल्म में माली की छोटी सी भूमिका भी की थी। 1951 में बनी फ़िल्म ‘आंदोलन’ में पहली बार किशोर कुमार नायक बने।

0 होली के गीत जितने किशोर कुमार के लोकप्रिय हुए उतने किसी और गायक के नहीं।

0 खंडवा में मीटर गेज लाईन से इंदौर के क्रिश्चचन कॉलेज जाते समय किशोर कुमार हर स्टेशन पर कंपार्टमेंट बदलते थे और हर डिब्बे में अलग-अलग आवाज़ में बातें किया करते थे।

0 उन्हें मानव कंकाल और खोपड़ियां एकत्र करने का शौक था।

0 पाश्चात्य गायक जिम्मी रोज़र से प्रभावित होकर अरविंद सेन की फ़िल्म मुकद्दर से यूडलिंग आरंभ की, ये यूडलिंग ही उनकी ख़ासियत बनी।

0 फ़िल्म पहली तारीख में गाया उनका गीत ‘खुश है ज़माना आज पहली तारीख है’, रेडियो सिलोन के विदेश विभाग से लगातार 38 सालों तक हर महीने की पहली तारीख को बजता था।

0 रबड़ी, कुल्फी, मलाई खाना उन्हें बेहद पसंद था। पहाड़ों पर घूमने का भी उन्हें बेहद शौक था।

0 ‘कोई हमदम न रहा कोई सहारा न रहा,’ ये गीत 1935 में बनी ‘जीवन नैय्या’ फ़िल्म में अशोक कुमार ने गाया था। बाद में 1961 में किशोर कुमार ने इसे अपनी फ़िल्म ‘झुमरू’ में लिया और यह काफ़ी लोकप्रिय हुआ। यह किशोर कुमार के पसंदीदा गीतों में से एक है।



प्रस्तुति : नीलम शर्मा ‘अंशु’


तथ्य संकलनजनसत्ता, मुंबई के रविवारी सबरंग में प्रकाशित कॉलम ‘जवाब इसाक मुज़ावर के’ तथा विभिन्न फ़िल्मी पत्रिकाएं।

1 comments:

  1. Bahut kuchh naya maloom pada Kishor Da ke bareme! Sach kaise,kaise fankaar hame chhod gaye! Na bhooto na bhavishyati!
    Aapka link dene ke liye charch manch ka shukriya!

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I dare say I am compelled, unconsciously compelled, now to write volume after volume, as in past years I was compelled to go to sea, voyage after voyage. Leaves must follow upon each other as leagues used to follow in the days gone by, on and on to the appointed end, which, being truth itself, is one—one for all men and for all occupations.
Joseph Conrad
(1857-1924)
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