गणेश चतुर्थी व्रत कथा (पत्थर चौथ)

दोस्तो,  आज ईद और गणेश चतुर्थी पावन त्योहार है। दोनों ही त्योहार का संबंध चांद से है। ईद में चांद का दर्शन किया जाता है लेकिन भाद्र चतुर्थी के इस दिन चांद नहीं देखा जाता। पौराणिक कथा है कि इस दिन चंद्र दर्शन से झूठा कलंक लगता है। तो लीजिए विस्तार से पेश है यह कथा। 


गणेश चतुर्थी व्रत कथा 


     ०    आशा रानी शर्मा 




हर शुभ कार्य से पहले गणेश पूजन किया जाता है, गणेश जी ऋद्धि-सिद्धि, सुख-समृद्धि के देवता माने जाते हैं। आज भाद्र माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी है। इस दिन गणेश जी की पूजा अर्चना की जाती है। आज के दिन चन्द्र दर्शन नहीं किया जाता। पौराणिक कथा है कि आज के दिन चांद देखने से झूठा कलंक लगता है। अगर, ग़लती से चन्द्र के दीदार हो भी जाएं तो यह कथा सुन लेनी चाहिए या इसका पाठ कर लेना चाहिए। कथा यूं है :-


 गणेश जी किसी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अपने वाहन मूषक पर सवार हो कर जा रहे थे। चंद्रमा ने उनका मज़ाक उड़ाया। चंद्रमा को अपने सौंदर्य, अपनी खूबसूरती पर बहुत अभिमान था। उनके अभिमान को भंग करने के लिए गणेश जी ने उन्हें शाप दे दिया कि जो भी तुम्हें देखेगा उसे कलंक लगेगा। परिणामस्वरूप चंद्रमा को अपनी ग़लती का अहसास हुआ तो उन्होंने गणपति से क्षमा याचना की। अंतत: गणेश जी ने प्रसन्न हो कर उन्हें इस शाप से मुक्त करते हुए कहा कि इसका प्रभाव केवल भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी को रहेगा। 


कहते हैं कि एक बार, इस दिन भगवान श्री कृष्ण को गाय दुहते समय गाय के मूत्र में चांद दिख गया था। परिणामस्वरूप उन पर समयंतक मणि की चोरी का झूठा कलंक लगा। कथा कुछ इस प्रकार है -


सत्राजित यादव ने सूर्य भगवान की तपस्या कर उनसे समयंतक मणि प्राप्त की थी जिसका प्रकाश सूर्य के समान था। वह प्रतिदिन पूजा के बाद स्वर्ण प्रदान करती थी। एक दिन उस मणि को धारण कर सत्राजित श्री कृष्ण के दरबार में गया तो लोगों ने श्री कृष्ण से कहा कि भगवान सूर्य आपके दर्शनों को पधारे हैं। श्री कृष्ण ने कहा कि यह तो सत्राजित है। वास्तविकता पता चलने पर लोगों ने सत्राजित से वह मणि राजा उग्रसेन को सौंपने का आग्रह किया परंतु उसने इन्कार कर दिया।



एक दिन सत्राजित का छोटा भाई प्रसेन उस मणि को गले में डाल जंगल में गया। वहाँ एक शेर ने उसे मार कर मणि ले ली। आगे चल कर शेर को रीछ जामवंत ने मार डाला और मणि ले जाकर अपनी बेटी को दे दी।

उधर प्रसेन के घर न लौटने पर सत्राजित ने अपनी पत्नी से शंका ज़ाहिर की कि मणि की ख़ातिर श्री कृष्ण ने मेरे भाई को मार दिया है। इस तरह धीरे-धीरे यह बात श्री कृष्ण की पटरानी तक पहुंची और पटरानी से श्री कृष्ण तक। आरोप को सुनकर भगवान श्री कृष्ण कुछ लोगों को साथ लेकर प्रसेन की तलाश में गए। जंगल में उन्हें प्रसेन का शव दिखा और शेर के पैरों के निशान नज़र आए। पैरों के निशानों का पीछा करते हुए वे आगे बढ़े तो थोड़ा आगे जाकर उन्होंने शेर को भी मृत पाया। पुन: वे रीछ के पैरों के निशानों का पीछा करते हुए एक गुफा के पास पहुँचे। श्री कृष्ण ने अपने साथियों से गुफा के बाहर इंतज़ार करने को कहा और यह भी कहा कि 15 दिनों तक मैं न आऊँ तो आप लोग वापिस लौट जाएं और मुझे मृत समझ लिया जाए। गुफा के भीतर प्रवेश कर श्री कृष्ण ने वहाँ जामवंत की बेटी को  मणि के साथ खेलते देखा। वे उससे मणि लेने लगे तो बेटी ने जामवंत को आवाज़ दी। उस मणि के लिए दोनों में 27 दिनों तक रात-दिन युद्ध हुआ। अंतत: हार मान कर जामवंत ने अपनी बेटी जामावंती श्री कृष्ण को ब्याह दी और मणि उपहार में श्री कृष्ण को सौंप दी। और, इस प्रकार वापिस आकर श्री कृष्ण ने वह मणि सत्राजित को वापिस लौटा कर खुद पर लगे झूठे कलंक से मुक्ति पाई और बताया कि भाद्र चतुर्थी (चौथ का चांद) का चांद देखने के कारण मुझ पर यह झूठा कलंक लगा था। यह भी कहा कि अगर कोई ग़लती से भादों की चौथ का चांद देख ले तो उसे मणि की इस कथा का श्रवण या पाठ कर लेना चाहिए तो कलंक दूर हो जाएगा और भगवान गणेश प्रसन्न हो जाएंगे। सत्राजित ने अपनी बेटी सत्भामा का विवाह कर मणि श्री कृष्ण को भेंट कर दी।  



!  जय गणेश  !

1 comments:

  1. आप व् आपके परिवार वालों को श्री गणेश चतुर्थी की बधाई व् शुभकामनाएँ....

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I dare say I am compelled, unconsciously compelled, now to write volume after volume, as in past years I was compelled to go to sea, voyage after voyage. Leaves must follow upon each other as leagues used to follow in the days gone by, on and on to the appointed end, which, being truth itself, is one—one for all men and for all occupations.
Joseph Conrad
(1857-1924)
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