इक्कीसवीं सदी के लेटेस्ट प्रेम


वे सज धज कर यों निकले थे कि मानो किसी फैशन शोमें भाग लेने जा रहे हों या फिर ससुराल। बूढ़े घोड़े को यों सजे धजे देखा तो कलेजामुंह को आ गया। बेचारों के कंधे कोट का भार उठाने में पूरी तरह असफल थे इसीलिए वेखुद को ही कोट पर लटकाए चले जा रहे थे। पोपले मुंह पर चिपके होंठों पर अपनी घरवालीचमेली की विवाह के वक्त की लिपस्टिक पोते। रहा न गया तो टाइम पास करने को पूछ लिया,’ भैया जी! इसकातिलाना अदा में कहां जा रहे हो? क्या मेनका को घायल करने का इरादा है?’ मेरे मुंह सेमेनका का नाम सुना तो घिसी पिटी उनकी नसों में एक बार फिर सनसनाहट सी हुई।

कुछ कहने के लिए वे कुछ देर तक खांसी को रोकतेरहे। जब उनसे खांसी वैसे ही नहीं रूकी जैसे सरकार से महंगाई नहीं रूक रही तो चुटकीभर कफ को कुछ देर तक रूमाल में बंद करने के बाद बोले,’ समाज कल्याणकरने जा रहा हूं।
तो अब तक क्या किया??’
समाज को खाता रहा।एक बात बताइए साहब! ऐसा हमारे समाज में क्योंहोता है कि बंदा नौकरी में रहते हुए तो समाज को नोच नोच कर खाता है और रिटायर होनेके तुरंत बाद उसके मन में समाज के प्रति कल्याण की भावना कुकरमुत्ते की तरह पनपनेलगती है?उसका मन समाजसेवा के लिए तड़पने लगता है। ……पर फिर भी मन को बड़ी राहत महसूस हुई कि चलो जिंदगी में कुछआज तक मिला हो या न पर एक बंदा तो ऐसा मिला जो सच बोलने की हिम्मत कर पाया। वर्नायहां तो लोग चिता पर लेटे लेटे भी झूठ बोलना नहीं छोड़ते।
तो समाज कल्याण के अंतर्गत क्या करने जा रहे हो? दूसरों कीपत्नियों से प्रेम या फिर अपनी बेटी की उम्र की किसी गरीब की बेटी से विवाह।समाज सेवकों केएजेंडे में बहुधा मैंने दो ही चीजें अधिकतर देखीं।
कुछ गोद लेने जा रहा हूं।कहते हुए बंदेके चेहरे पर कतई भी परेशानी नहीं। उल्टे मैं परेशान हो गया। यार हद हो गई!रिटायरमेंट से पहले तो बंदा रोज पूरे मुहल्ले को परेशान करके रखता ही था पर येबंदा तो रिटायरमेंट के बाद भी कतई ढीला न पड़ा।
इस उम्र में आपके पास गोद नाम की चीज अभी भी बची है ??? गोद में मंहगाईको हगाते मूचाते क्या अभी भी मन नहीं भरा ?’ बंदे की हिम्मत की आप भी दाद दीजिए।
तो अनाथ आश्रम जा रहे होंगे?’
नहीं!!कह वे छाती चौड़ा कर मेरे सामने खड़े हो मुसकराते रहे।हालांकि उनके पास छाती नाम की चीज कहीं भी कतई भी नजर न आ रही थी।
तो किसी रिश्तेदार का बच्चा गोद लेने जा रहे होंगे?’
नहीं। चिड़ियाघर जा रहा हूं।
चिड़ियाघर में आदमी के बच्चे कब से गोद लेने के लिए मिलनेलगे?’
जबसे अनाथ आश्रमों के बच्चों को अनाथ आश्रम के संरक्षक खागए। उल्लू गोद लेने जा रहा हूं। सोच रहा हूं जो नौकरी में रहते न कर सका वो अब तोकर ही लूं। नौकरी भर तो औरों की गोद में बैठा रहा।
आदमियों ने बच्चे क्या हमारे देश में पैदा करने बंद कर दियेजो तुम…..’
भगवान हमारे देश को बच्चे देना बंद भी कर दे तो भी हम बच्चेपैदा करने न छोड़ें। बच्चे गोद लेना तो पुरानी बात हो गई मियां! अब तो विलायतीकुत्ते, उल्लू, गीदड़, मगरमच्छ, गोद लेने का युगहै। अपने को रोटी मिले या न मिले, पर विलायती कुत्तों को आयातित बिस्कुट खिलाने में जो परमसुखकी प्राप्ति होती है, मुहल्ले में जो रौब दाब बनता है उससे सात पुष्तों के चरित्रसुधर जाते हैं। मुहल्ले में दस में से पांच ने कुत्ते गोद ले रखे हैं। मैंने सोचा, जरा लीक से हटकर काम हो तो मरते हुए समाज में नाम हो सो उल्लू गोद लेने की ठान ली।कह वे मंद मंदकुबड़ाते मुसकराते हुए आगे हो लिए गोया बीस की उम्र में कमेटी के पार्क मेंप्रेमिका से मिलने जा रहे हों।
मियां हो सके तो इंसानियत को गोद लो। हो सके तो प्रेम केअसली रूप को गोद लो तो यह छिछोरापन कर परलोक सुधारने का दंभ न करना पड़े।पर वहां था हीकौन जो मेरी आवाज पर ध्यान देता।

4 comments:

  1. बेहद सटीक व्यंग्य्।

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  2. हा..हा..हा..मजेदार. कभी 'पाखी की दुनिया' की भी सैर पर आयें .

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  3. आप ने तो मन मओह लिया जनाब ! बहुत उम्दा !

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  4. Thanks for suggesting a worthwhile post retirement plan !

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It is a true saying that a man must eat a peck of salt with his friend before he knows him.
Miguel de Cervantes
(1547-1616)
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