सुख भरे दिन बीते रे भैया...

जो ताऊ चुनाव के दिनों में अपने तो अपने, पूरे परिवार केपेटों को कब्‍जी कराए बैठा था, सबका पेट था कि बस खाए जा रहा था, बस खाए जा रहाथा। जो भी आते ,जो भी देते खा जाते, ज्‍यों बरसों के भूखे हों। पता नहीं ये वोटरचुनाव के दिनों में इतने भुक्‍खड़ क्‍यों हो जाते हैं? तब मैंने ताऊ केये हाल देख उसे समझाया भी था,‘ ताऊ! कम खा, कम! क्‍यों चारदिनों में अपनी पांच साल की आदत खराब कर रहा है।' पर ताऊ था किमेरी एक भी सुनने को तैयार नहीं था उस वक्‍त। ताऊ ही क्‍या, कोई भी समझदारवोटर ताऊ की तरह ही डटा हुआ था।
चुनाव खत्‍महुए! हारने वाले हार गए, तो जीतने वाले जीत गए। हारने वालों ने आत्‍म मंथन शुरू कियातो जीतने वालों ने जन मंथन। जो कल तक हाथ जोड़े खडे़ थे वे अब मुटि्‌ठयां भिंचेखड़े हैं। वोटर सामने आए तो सही। साले ने इतने दिन ऐसी की तैसी घुमा कर रखी। सोनातक हराम कर दिया था इस वोटर जात ने। रात को सोए सोए भी पसीने छूटते रहते थे। बुरेसपने आते रहते थे। अब तो भैया जीत गए हैं ,पांच साल लंबी तान कर सोएंगे। मरने वाला मरतारहे , जीने वाला जीतारहे अपनी बला से। यार हमने कोई पांच साल तक का जनता का ठेका तो नहीं ले रखा है।बहुत खिलाया पिलाया इतने दिन जनता को, ये क्‍या कम है? अब तो अपनेटांगें पसार कर खाने के दिन हैं भैये! हमने चुनाव जनसेवा के लिए थोड़े ही जीता है।अपने भी बाल बच्‍चे हैं यार! अपनी भी भूखी नंगी रिश्‍तेदारी है! रिश्‍तेदारी केकर्ज अब नहीं उतारेंगे तो कब उतारेंगे भैये! साली जिंदगी का क्‍या भरोसा, सरकार गिरने काक्‍या भरोसा। आजकल तो सरकारें ऐसे गिर जाती हैं कि ऐसे तो नया नया चलना सीखने वालाबच्‍चा भी नहीं गिरता। अपनी भी आपकी तरह प्रेमिकाएं हैं जिनका अपने सिवाय सच्‍चीको कोई नहीं। होगा तो साले को साला बना कर नहीं रख दें तो खद्‌दर पहनना छोड़ दें॥सात पुश्‍तों के लिए अब नहीं जोड़कर रखेंगे तो कब रखेंगे? अब है किसी माईके लाल में इतनी हिम्‍मत कि जो हमें खाने से रोके?
चुनाव केबाद मैं ताऊ घर गया तो बेचारा ताऊ सिर में हाथ दिए बैठा था। सोचा बीमार चल रहाहोगा। बहुत खाया इतने दिनों तक। बहुत पिया इतने दिनों तक। जिसको पांच साल तक खानेको कुछ न मिले और एकाएक इतना मिले कि ... तो बीमार तो होगा ही।
और ताऊ क्‍याहाल हैं? चुनाव में हरामके खाए पिए की खुमारी उतरी कि नहीं?' मैंने ताऊ को पूछा तो ताऊ कुछ कहने के बदलेचुप रहा वैसे ही सिर में हाथ दिए। पहले तो सोचा की हारने वाले का गम खाए जा रहाहोगा इसे। पर ताऊ ने बताया कि उसका उम्‍मीदवार तो आज तक जीता ही है। उम्र हो गईताऊ को खाते खाते। खा खा कर वोट पाते पाते। वैसे चुनाव सम्‍पन्‍न हो जाने के बादजनता की अक्‍सर ताऊ वाली ही स्‍थिति होती है।
बड़ी देरतक ताऊ ने न पानी को पूछा न बैठने को तो ताऊ पर गुस्‍सा भी आया। हद हो गई यार ताऊचार दिन तक नेताओं ने फूक क्‍या भरी, टुच्‍चे से नर को नारायण क्‍या कहा कि तू तोउम्र भर के शिष्‍टाचार को भी भूल गया। मुझे प्‍यास लगी थी सो ताऊ के नलके की ओरमुड़ा। चुनाव के दिनों में जब यहां आया था तो ताऊ के पाइप में जहां पहले पानीरोकने को भुट्‌टे की गुल्‍ली लगी होती थी वहां कोई उम्‍मीदवार विदेशी नलका फसा गयाथा। अभी फिर वहां पाइप में मक्‍की के भुट्‌टे की वही -

गुल्‍लीलगी देखी तो गश खा गया।
ये क्‍या ताऊ? वो नलका कहांगया?'

ताऊ नेपेट पकड़ मरी आवाज मे कहा,‘ बादल वाले हारने पर ले गए मुए निकाल कर।'
क्‍यों?'
कहा, वोट लेने तकदिया था।'
मैंने ताऊके ओबरे की छत की ओर नजर डाली तो देखा कि उस पर चुनाव कि दिनों में जो तरपाल लगाथा, वह भी गायब था।
ताऊ, वह तरपाल कहांगया? तूफान तो आयानहीं कि उड़ कर कहीं चला गया हो।'
वो भी ले गएसाइकिल वाले। कहा, जीत तो हुई नहीं, अब अगले चुनाव में मिलेगा।'
और वो लाइट जोतुम्‍हारे नीम के पेड़ के सिर पर लगी थी?'
लालटेन वालेउतार कर ले गए। बोले, खुदा ने जिंदा रखा तो फिर चुनाव के आते ही तुरंत लगाएंगे, ले जा रहे हैंतब तक यहां लगी लगी फ्‌यूज न हो, इसलिए। दूसरे पार्टी के मुख्‍यालय में खुद भी अंधेरा है।'
'और जो सामनेसड़क पर सड़क पक्‍की करने को रोलर, रोड़ी ,तारकोल रखी थी?'
वो भी हाथ वालेले गए, बोले, पार्टी को संसदमें जमाने के लिए रास्‍ता पक्‍का करने को ले जा रहे हैं। सब पक्‍का होते ही लेआएंगे।'
और जो तुम्‍हारेगांव में स्‍कूल का पत्‍थर रखा था?' मुझे सामने वो पत्‍थर न दिखा तो पूछा।
हाथी वाले उठाकर ले गए। बोले, जहां से पार्टी को लीड मिली है अब वहां लगाएंगे। अगले चुनावतक हमें लीड का जुगाड़ करो तो देखेंगे।'
अचानकसामने नीम की फुनगी पर कौआ कांव कांव करता दिखा तो ताऊ ने पूछा‘,रे छोरे! कागभाषा जानता है क्‍या?'
हां ताऊ!'
तो ये कौआ बताक्‍या बोल रहा है?'
कह रहा है किअगले चुनाव तक वोटर को भगवान हिम्‍मत दे।'
मैंने ताऊका मन रखने के लिए कौवे की भाषा का विश्‍ोषज्ञ होने का दावा दे मारा जबकि सच तो यहहै कि मैं आदमी की भाषा भी नहीं जानता।

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Let us speak, though we show all our faults and weaknesses,—for it is a sign of strength to be weak, to know it, and out with it.
Herman Melville
(1819-1891)
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