प्रेस क्लब ने दिया रतन चंद निर्झर को साहित्य सेवा सम्मान

बिलासपुर प्रेस क्लब में मंगलवार को साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें सुखराम आजाद मुख्यतिथि व कमांडेंट सुरेंद्र शर्मा अध्यक्ष तथा डा. एआर सांख्यान व डा. प्रशांत आचार्य विशेष रूप से उपस्थित रहे। इस अवसर पर जाने माने कवि लेखक रतन चंद निर्झर को मुख्यतिथि द्वारा टोपी व स्मृति चिन्ह देकर साहित्य सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया। मंच का संचालन रविंद्र भटटा ने किया। कुलदीप चंदेल ने प्रेस क्लब में 2018 में आयोजित हुई साहित्यक संगोष्ठियों का लेखा जोखा प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि हर माह प्रेस क्लब में नियमित रूप से साहित्यकारों ने साहित्यक संगोष्ठी सजाई। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी के निधन पर 18 अगस्त को गोष्ठी में कविताओं के रूप में श्रद्धाजंलि भर दी गई। प्रदीप गुप्ता ने गजल गायिका जरीना बेगम को लेकर पत्र वाचन किया। अमर नाथ धीमान ने पहाड़ी गजल मना रे मन च आएगे दीऊ से जलाईगे, राम पाल डोगरा ने लिखूं गरीब की कहानी, हुसैन अली ने मेरी कबर के पत्थर पर हिंदुस्तान लिख देना, जीतराम सुमन ने दुनिया के रिश्ते कितने अजीब हो गए। शिव व पाल गर्ग ने यार जिंदगी जी कर चले गए, जिंदगी  क्या है हम यही सोचते रह गए,। प्रतिभा शर्मा ने त्यौहार खास होते हैं, अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म दिवस पर कहा कि अटल सा ही चाहिए भारत मां के हर लाल , समपर्ण भाव से करते थे हर काम, रतनचंद निर्झर ने कूड़ादान को लेकर यूं कहा कि मुहल्ले के कोने में सुबह -सुबह खिल उठता है कूड़ादान, अश्विनी सुहिल ने मेहनत से उठा हूं, मेहनत का दर्द जानता हूं, ओंकार कपिल ने मुह मद रफी का गीत तुम जो मिल गए हो सुनाया। कुलदीप चंदेल ने अपने को महाज्ञानी समझने लगे हैं, कुछ मित्र मेरे शहर के , डा. जय नारायण कश्यप ने कोई उंगलियों में नचाए कोई उंगलियां चबाए, किशोक अलौकिक ने राजा रंक लड़ाई का होता अंत बुराई का। डा. प्रशांत आचार्य ने पूजने जब चला में शिव कला और श्यामल ,प्रदीप गुप्ता ने कई मुखौटे , जमुना ने त्याग कर गांव को मानव, जब शहर को भागा, अरूण डोगरा ने मंच के एक ओर द्वीप प्रज्जलवित था, रविंद्र भटटा ने जीवन के इस मोड पर कहां खो गया हूं। डा. एआर सां यान ने तू दबे पांव चोरी छिपे न आ, सामने वार कर फिर मुझे आजमा, सुरेंद्र शर्मा ने शहर में हर शख्स हैरान क्यों हैं। तथा सुख राम आजाद ने किस किस री गल करिए, कुण कुण इति उत हुऊ गया

साभार  http://www.janwaqtalive.com/प्रेस-क्लब-ने-दिया-रतन-चंद/

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To retire is not to flee, and there is no wisdom in waiting when danger outweighs hope, and it is the part of wise men to preserve themselves to-day for to-morrow, and not risk all in one day.
Miguel de Cervantes
(1547-1616)
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