बाबा शेख फरीद
Posted by :मानसी
ON
Saturday, May 15, 2010
No comments

बाबा शेख फरीद का जन्म वर्ष 1173 में मुल्तान जिला के खोतवाल गांव में हुआ था। अनेक वर्षों तक हरियाणा के हांसी (हिसार) में रहकर वह खुदा की इबादत में लगे रहे। एक बार उन्होंने देखा कि नया-नया फकीर बना एक युवक किसी से भोजन नहीं मिलने पर गुस्से में गालियां दे रहा है। उस युवा फकीर को शांत करते हुए बाबा ने कहा, ‘खुदा के अलावा किसी से कुछ अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। जो दे, उसका भी भला और जो न दे, उसका भी भला-इस बात को मानकर चलना चाहिए। हृदय में ही खुदा का निवास है। दूसरे को गाली देकर क्या हम दोजख (नरक) में जाने का काम नहीं कर रहे?’ बाबा के शब्दों ने जादू का काम किया और वह युवक उनका शिष्य बन गया। बाबा ने हमेशा ऊंच-नीच की भावना का विरोध किया। उन्होंने लिखा, ‘अय फरीद, जब खालिफ खुलफ के भीतर मौजूद है और उसी में सब कुछ समाया है, तो किसको मंद और नीच समझा जाए।’ फरीद सूफी फकीर थे। उन्होंने फारसी में कविताओं की रचना की। उन्होंने लिखा, वार पराये वेसना साईं मुझे न देई। ईश्वर को छोड़कर किसी की आशा नहीं करनी चाहिए। एक शिष्य की जिज्ञासा का समाधान करते हुए उन्होंने कहा, ‘संतोष, नम्रता, सहनशीलता, ईमानदारी, त्याग और उदारता ऐसे गुण हैं, जो आदमी को खुदा के पास ले जाते हैं।’ जब एक युवक परिवार त्यागकर उनका शिष्य बनने पहुंचा, तो उन्होंने उससे कहा कि वृद्ध माता-पिता, पत्नी व बच्चों का दिल दुखाकर कोई जन्नत नहीं पा सकता। वह युवक वापस लौट गया।

THANKS FOR VISIT
आप अपनी रचनाएं भेज सकते हैं

0 comments:
Post a Comment