वह उस दिनघंटों मेरे घर में बैठे रहा। परेशान! मुझे भी कमबख्त ने परेशान कर डाला था। उसदिन तो मैंने खुदा से गुहार लगाई थी कि या मेरे खुदा या तो मुझे इस लोक से उठा लेया मेरे इस पड़ोसी को।
‘तू धर्म कोमानता है क्या?'
‘मानता हूं। नमानता तो अपनी पत्नी का धर्म पति कैसे होता?'
‘अच्छा, एक बात बता? धर्म तेरे लिएक्या है?'
‘धर्मांधता।' मुझे उस वक्तबड़ा गुस्सा आया था । यार पूछना ही है तो पूछ तेरे जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी क्याहै ,जिसे मैं आज भीझेल रहा हूं। तो मैं दुनिया भर की पीड़ा जीभ पर लिए कहूं कि हे मेरे दोस्त! मेरेजीवन की सबसे बड़ी त्रासदी है कि मैं बड़े कालर खड़े करके निकला था प्रेमी बनने औरबन गया पति। पर वह तो आज धर्म के पीछे हाथ मुंह धो कर पड़ा था।
‘ धर्म हमें क्याक्या करने की इजाजत देता है?'
‘ सबकुछ करने की।'मैंने इतनी सहजतासे कहा जैसे मैं धर्म का ठेकेदार होऊं।'
‘तो एक बात कहूं!पर किसी को भी मत कहना। मन में उसने महीनों से उथल पुथल मचा कर रखी है। घर का नखाना अच्छा लग रहा है न पीना। पत्नी के साथ रहते हुए भी जागते हुए भी वही दिखतीहै और सोए हुए भी वही। मैं दूसरा विवाह करना चाहता हूं बस! क्या अपना धर्म इसकीइजाजत देता है?मेरा कहींऔर दिल आ गया है। अब तुझसे छिपाना क्या!'
‘इस उम्र में?अपना धर्मफिलहाल तो इसकी इजाजत नहीं देता। आधे बाल तो तेरे सफेद हो चुके हैं! अब आगे कीसोचने के दिन शुरू हो गए और एक तू है कि...'पर उसने मेरी एक न सुनी। अपनी ही बकता रहा।
‘ तो क्या धर्मबदला जा सकता है?'
‘क्यों नहीं।धर्म तो यहां जांघिए से भी आसानी से बदला जा सकता है।'
‘सच!!'
‘सोलह आने सच।'
‘ तो क्या मैंधर्म बदल कर फिर सुहागरात मना सकता हूं?' मत पूछो उस वक्त उसके स्याह चेहरे पर कितनानूर झलका था।
‘ हां!!'
‘कौन सा धर्म?'
उसी धर्मको जिसे पिछले दिनों एक आदरणीय ने अपनाया था। '
मुझे उसकीइस बात पर उससे भी ज्यादा हंसी आई थी,सो मैंने उससे पूछा,‘ पहली ठीक ढंग सेपाल रहा है क्या! परेशानियों से काले पड़े चेहरे पर क्यों कालिख मलने को आमादाहै?'
‘पालने वाला मैंकौन? तू कौन? जिसने सिर दियाहै सेर देने वाला तो वही है। दुनिया में आए हैं तो मन मसोस कर क्या जीना मित्र!क्या पता कब प्राण पंखेरू उड़ जाएं।'
‘ तो दो दो कोविधवा करने की सोची है क्या?' आगे उसने कुछ नहीं कहा चुपचाप मेरे यहां येउठा और... और सच मानिए, उस दिन पता नहीं भगवान ने मेरी कैसे सुन ली। अगले दिनपड़ोसी गायब। खुशी में पगलाया ज्यों ही उसके घर लड्डू बांटता पहुंचा तो दिमाग नेकहा,‘ रे पगले ! ये तूलड्डू बांटता कहां आ गया? इनको अगर तेरे लड्डू बांटने के कारण का पता चल गया तो गएसिर के पचासों दवाइयां लगाकर बचाए बाल भी।' और मैं सिर पर पांव रख वहां से हवा हो लिया।
घरवालोंने उसके गायब होने के इश्तिहार कहां कहां नहीं दिए! शहर के शौचालय से लेकर पुस्तकालयतक उनकी गुमशुदगी के पर्चे चिपकाए गए ,पर नतीजा सिफर । अखबारों में पर्चे बांटे गएतो उसके गायब होने की सूचना पा घर मे उधार लेने वालों की कतार आ लगी। घरवालों कोतब पता चला कि उसने किस -किसको चाटा हुआ था।
धीरे-धीरेजब उसकी घरवाली भी उसे भूलने लगी तो हम कौन होते उसे याद रखने वाले? हां कभी कभी जबपत्नी से नोक झोंक सीमा से बाहर हो जाती तो वह बड़ा याद आता और मेरा मन भी करताकि...
और कल वहअचानक फिर प्रगट हो गया। अकेले नहीं , नई बीवी के साथ। कर्मजली उसकी एक्स पत्नीने ही यह शुभ खबर दी।
वह शान सेबंधु सीना फुलाए हुए। चेहरे की सारी झुर्रियां कहीं गायब। न कोई शर्म न कोई हया।चार महीने सेहत सुधार के लिए घर से अलग रहने के लिए काफी होते हैं शायद।
‘ और बंधु! कैसेहो? इतने दिन आखिरकहां रहे?ये आखिरसाथ में है क्या? कर ही गए न आखिर अपने मन की।'
‘ अब मैं बंधुनहीं, मुहम्मद हूं।'
‘इस धर्म से तोनाम कटवा लिया,अब ऊपर भी बहीमें नाम बदलवा लेना।'
‘वहां भी अर्जी देदी है, चिंता न कर।' कह उन्होंनेडाई की मूंछों पर ताव दिया तो मेरी काली मूंछें भी सफेद हो गईं। धर्म कल्प सच्चीको गधे का भी हुलिया बदल कर रख देता है। फिर उन्होंने सगर्व ऐलान किया,‘ हे मुहल्लेवालो ! अब हम राम प्रकाश नहीं रहे। अब हम राम मुहम्मद हो गए हैं। अतः सभी कोसूचित किया जाता है कि अब हमें इसी नए नाम से जाना जाए। पुराने नाम के खात्मे केसाथ अब अपने पुराने सारे संबंध खत्म। कल हमने कमेटी हाल में रिसेप्शन रखी है , राम प्रकाश कीश्रीमती सहित सभी सादर आमंत्रित हैं। अब चाहे मां रूठे या बाबा हमने दूसरी शादी करली ,धर्म ने हंस केहामी भर ली..'गुनगुनातेवे जिस आटो में आए थे उसी आटो में चले गए,नई बेगम के साथ।
मे गॉडपीस हिज़ एक्स सोल!!
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