जबसेनौकरी में लगा हूं रीजक की कसम खाकर कहता हूं, मुझे दफ्तर में कितनी खिड़कियाँ हैं, नहीं मालूम। दफ्तरमें कितने काम करने वाले है, नहीं मालूम । कच्चा था ,तब भी इसी साहब के बंगले में था , पक्का हुआ तोभी इसी बंगले में, और साहब की कृपा हुई तो गुनगुनाता हुआ साहब के इसी बंगले सेगले में कागजी फूलों की मालाएँ डाले एक सांझ रोता हुआ रिटायर भी हो जाऊंगा।
सच पूछोतो साहब को अपने बंगले का इतना पता नहीं जितना पता मुझे साहब के बंगले का है। सचपूछो तो साहब की मेम साहब को इतना पता साहब के कैरेक्टर का नहीं जितना पता मुझेसाहब के कैरेक्टर का है। सच पूछो तो साहब को अपने कैरेक्टर का इतना पता नहीं जितनापता मुझे साहब के कैरेक्टर का है। यह अलग बात है कि दफ्तर के बारे में मुझे कुछभी पता नहीं। साहब की हर चीज का पता होने के बाद भी जो दफ्तर के बारे में सपनेमें भी सोचते हैं, वे नालायक होते हैं।
साहब कीबीवी परसों से मायके गई हुई है। मेरे भी सारा दिन टांगें चौड़ी कर उनके बंगले मेंपसरने के मजे आए हुए थे। साहब की बीवी घर नहीं, मुझे किसी का डर नहीं। सारा दिन कभी इसचारपाई पर पसरता तो कभी उस चारपाई पर। लेट लेट कर पसलियाँ दुखने लग गईं। हम नौकरोंके साथ एक साला यही तो गलत होता है कि अगर दो दिन खुला छोड़ दो तो तीसरे दिन हडि्डयोंमें दर्द होने लगता है। अब कल हुआ क्या कि साहब के बेड पर साहब की तरह सोयाटांगें पसार कर टीवी देख रहा था कि अचानक मेमसाब का फोन आ पड़ा । साला टीवी देखनेका सारा मजा किरकिरा हो गया। साहब को तो जबसे मेमसाब मायके गई है अपनी भी सुध नहींतो बंगले की क्या खाक होगी? यार मेरी औकात वाले बताना कि क्या तेरा साहब भी ऐसा ही है? मैंने अनमने सेफोन उठाया और साहबी लहजे में बोला,‘ कौन, जी नमस्ते।'
‘ हां रामू, मैं तुम्हारीमेमसाब बोल रही हूं। और साहब कैसे हैं?' उन्होंने अपने कुत्ते से भी सौ गुणा ज्यादाफोन पर इस तरह पुचकारते हुए मुझसे पूछा कि मुआ मैं साहब की, साहब के बारेमें, साहब के सामने, अपने ज़मीर कोहाजिर नाजिर मानकर मेमसाब से सौ बार सच न कहने की कसम खाने के बाद भी सच कह हीगया।
‘जबसे आप गई हैंन तबसे उतने मजे में हैं, जितने तब भी नहीं होते थे जब वे कुंवारे थे।'
‘सच!!!'
‘मेमसाब आपका नमकखाता हूं। जीभ में कीड़े पड़ जाएं जो झूठ बोलूं।' कहना तो नहींचाहता था पर क्या करता सच बोला गया, तो बोला गया। पर मेम साहब की आवाज से लगा कि उन्होंनेमेरे सच कहने को माफ कर दिया। बड़े साहबों की मेमों के दिल सच्ची को अपने साहबोंके पदों से कई गुणा बड़े होते हैं, आज पहली बार देखा था।
उन्होंनेमेरे सच कहने का कोई नोटिस न लेते पूछा,‘ साहब को छोड़, अच्छा बता, बाबा कैसा है? ठीक से खाना तोखा रहा है न?ठीक से सोतो रहा है न?मुझे मिसतो नहीं कर रहा? मुझे आज रात सपने में वह भूखा दिखा बहुत, उदास दिखा। सचकहूं, तेरी कसम रामू!उसके बाद तो मुझे नींद ही नहीं आई। मेरी भूख जहां थी वहीं अटक गई, मेरी प्यासजहां थी वहीं अटक गई । बाबा का ध्यान रखना। अगर वो आकर मुझे जरा भी कमजोर दिखा नतो मुझसे बुरा कोई न होगा।' मेमसाब की आवाज इतनी भर्रा गई थी कि जो सच कहूं इतनी तोमेरी आवाज उस समय भी नहीं भर्राई थी जब मुझे पालने वाले मेरे सब कुछ, मेरे गुलियाचाचा स्वर्ग को गए थे।
‘ हां मेमसाब, जबसे आप गई हैंन साहब तो रोज दो किलो भारी हो रहे हैं पर बाबा...' कहते कहते मेरीसांसें जैसे किसी गद्दी कुत्ते को देख डर के मारे रूकने लगी हों।'
‘पर क्या? बाबा को....कहीं बाबा मेरे बिना उदास तो नहीं। देख रामू , मुझे बाबा की इतनी चिंता है कि अगर बाबा कोकुछ हो गया न तो मैं कहीं की न रहूंगी और न तुझे ही कभी माफ करूंगी।'
‘मेमसाब! क्याहै न कि वह आपके जाने के बाद से ही कम खा रहा है। मेरे हाथों से आप तो खुश होकर खालेते हो पर एक ये बाबा है न कि...'
‘ तो ऐसा करो किसाहब के कपड़े पहन कर उसे खिलाओ। तब उसे लगेगा कि उसे रामू नहीं साहब खिला रहेहैं।'
‘मेमसाब, पिछली सुबह आपकेकहने से पहले ही ऐसा किया था, पर वह मुझे आंखें बंद किए ही पहचान गया और गालियां देने लगा,‘ छी किसके कपड़ेपहन लिए।'फिर बाबाने मुझे कुत्ता कहा , सूअर कहा, पर मैं चुप रहा कि मुझे जो चाहे कह ले पर कम से कम खाना तोखा ले। रे बाबा! तू अपने को किस देश का समझ रहा है? इस देश में तोखाने वाला खिलाने वाले के आगे नाक रगड़ता है कि मुझे खिला, और एक मैंखिलाने वाला हूं कि खाने वाले के आगे नाक रगड़ रहा है। बाबा बाहर गुन गुनी धूप मेंगलीचे पर साहब की तरह पसरा चुपचाप मेरा और मेमसाब का संवाद सुन रहा था। बीच बीचमें उसके ठहाका लगाने की आवाज भी आ रही थी। साला कुत्ता। कुत्ता किसी के बंगलामें भी रहे,किसी भीनाम को धारण कर ले, अल्टीमेटली रहता कुत्ता ही है।
‘तो ऐसा कर किवार्डरोब के ऊपर वाले खाने में से मेरी शादी वाली साड़ी निकाल कर पहन उसे खाना दे, वह समझेगा किमैं उसे खाना दे रही हूं। वह खा लेगा।'
‘पर मेमसाब, साड़ी और मैं!हमारे खानदान की किसी भी औरत ने आज तक साड़ी लगाना तो दूर साड़ी तक देखी नहीं ,ऐसे में...'
‘ मुझे बस कुछनहीं मालूम। जैसे भी हो साड़ी पहन और बाबा को खाना खिला वरना मेरे आने से पहले......' अब भाई साहब क्याकरूं, क्या न करूं, मेरी तो कुछ समझमें नहीं आ रहा। मेरी अक्ल पर तो जैसे पत्थर ही पत्थर पड़ गए हैं। ये चटोरी जीभबार बार कह रही है कि बंदे साड़ी लगा और बाबा को खाना खिला, तुझे पता नहींकि आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। यहां से बेदखल होने के बाद किस मुंह सेअपनी बिरादरी वालों के बीच जाएगा? पता है तुझे दफ्तर की फाइलों पर कितनी धूल जमी होती है? चार दिन में हीमेमसाब की क्रीम लगाए होंठ फट जाएंगे। और देखिए साहब! जिस बंदे ने कभी धोती तक नलगाई हो वह दस मिनट बाद मेमसाब की साड़ी पहन कर बाबी की सेवा में हाजिर हुआ तोबाबी तो बाबी,साहब कीफोटू से भी लार टपकने लगी।
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