आज के लोकार्पण

 शहर के मेन बस स्‍टैंड के पास बड़े दिनों से महिला शौचालय बनकर तैयार था पर कमेटी के प्रधान बड़ी दौड़ धूप के बाद भी उस शौचालय के लोकार्पण के लिए मंत्री जी से वक्‍त नहीं ले पा रहे थे और महिला यात्री थे कि पुरुष शौचालय में जाने के लिए विवश थे। पर वहां जब देखो कुत्‍ते लेटे हुए। अब कमेटी के कर्मचारियों का शौचालय की रखवाली करना मुश्‍किल हो रहा था। वे किस किसको कहते फिरें कि अभी इस शौचालय का मंत्री जी ने लोकार्पण नहीं किया है। लोगों को तो चलो जैसे कैसे मना लिया जाए पर औरों को कौन समझाए?सभी के आगे हाथ जोड़ते- जोड़ते बेचारों के अति हो गई थी।और आज कमेटी के प्रधान को बधाई देने की शुभ घड़ी आ पहुंची। बारह बजे महिला शौचालय को मंत्री जी ने जनता को समर्पित करना था। सुबह नौ बजे से शहर के सभी विभागों के मुखिया नाक पर रूमाल रखे सांसें रोके वहां खड़े हुए। मैंने उन्‍हें कहा ,‘ साहब !नाक पर रूमाल तो वाजिब है पर शौचालय के पास अभी से नाक पकड़ कर खड़े होने की जरूरत नहीं। अभी तो इसका लोकार्पण भी नहीं हुआ है,' पर वे अपनी नाक पर रूमाल रखे रहे। पता नहीं क्‍यों? मेरी समझ में आज तक नहीं आया।शौचालय को शादी के मंडप की तरह सजाया गया था गोया वहां किसी के फेरे लगने हों। पास ही लोक संपर्क विभाग वालों ने देश भक्‍ति के गीत पुरजोर चलाए हुए थे। उन्‍हें पता था कि मंत्री जी के दादा जी स्‍वतंत्रता सेनानी थी। छद्‌म थे ये केवल विपक्ष वाले कहते हैं। वैसे भी असली लोग फल की इच्‍छा रखते ही कहां हैं?आखिर एक बजे मंत्री जी का काफिला बस स्‍टेंड पहुंचा तो अफसरों की जान में जान आई। एक अफसर जो कोने जैसे में खडा. था अपने मोबाइल में टाइम देख मुंह में ही बड़बड़ाया,‘ साले ने भूखा मार कर रख दिया। अपने आप तो पता नहीं कहां -कहां काजू- बादाम मार कर आ रहा होगा।' कमेटी की सुंदर जवान महिला कर्मचारियों को खास तौर पर इओ ने सज धज कर आने को कहा था। उन्‍हें असल में मुस्‍कुराते हुए मंत्री जी को रिसीव करना था। मंत्री जी ने अपने स्‍वागत के लिए चार- चार सुंदर महिलाएं मुस्‍कुराते हुए अपनी राह में पलकें बिछाएं देखीं तो उनके चेहरे पर से एक झुर्री और गायब हुई।कुछ देर तक जुटाई गई भीड़ की ओर से खुश हो मंत्री जी कमेटी के प्रधान की पीठ थपथपाते रहे तो वह फूल कर कुप्‍पा हुए। उन्‍हें तय लगा कि अब वे किसी बोर्ड के चेयरमेन कभी भी हुए। देखते ही देखते उनका गला फूल मालाओं से पूरी तरह घुट गया। यह देख साथ चले पीए ने पूछा भी,‘सर! आपका गला फूलों से घुट रहा हो तो निकाल दूं?' पर वे उसकी बात को अनसुनी कर गए। आखिर उन्‍होंने महिला शौचालय के द्वार पर मुस्‍कराती लाल साड़ी में खड़ी, थाली में फूल, कैंची, तिलक लिए सुंदर नवयौवना को मंद मंद मुस्‍कराहट से देखा तो उसे लगा कि अब वह भी पक्‍की हो गई। महिला ने ज्‍यों ही मंत्री जी के माथे पर सिंदूर का टीका लगाया, उन्‍होंने अपने मन के वहम को बनाए रखने के लिए गठिया हुए हाथ से एक झटके से थाली से कैंची उठाई और खच से शौचालय के द्वार पर बंधा रिबन काट दिया। रिबन कटते ही पूरा बस स्‍टेंड अफसरों, पार्टी वर्करों की तालियों से गरज उठा। रिबन कटने के बाद ज्‍यों ही मंत्री जी शौचालय में जाने लगे तो पीए ने उन्‍हें रोक उनके कान में कहते उनसे पूछा,‘ सर! कहां जा रहे हैं आप?'‘लोकार्पण नहीं करना है क्‍या!?'‘ ये महिला शौचालय का लोकार्पण है सर! पुरुष शौचालय का नहीं।'‘ तो क्‍या हो गया! जाएंगे तो यहां मर्द ही। दूसरे हम मंत्री हैं, कहीं भी जा सकते हैं। मैं केवल पुरूषों का ही मंत्री थोड़े हूं। बल्‍कि महिलाओं का मंत्री अधिक हूं। पीछे हटो,' वे पीए को धक्‍का दे अंदर जाने को हुए तो पीए ने उनके कान में फुसफुसाया,' अखबार वाले आ गए हैं। एक ने तो कैमरा भी आपकी ओर ही कर रखा है', तो वे संभले और जिस पैर अंदर को चले थे उसके साथ सौ पैर और बाहर को मुड़े तो पार्टी वर्करों की जान में जान आई।महिला सशक्‍तीकरण हेतु महिला शौचालय के लोकार्पण के बाद मंत्री जी सीधे रेस्‍ट हाउस गए। वहां पर वे केवल खासमखासों से ही मिले। कमेटी के प्रधान को कार्यक्रम की सफलता की बधाई देते उन्‍होंने पूछा,‘ वे स्‍वागत के लिए अप्‍सराएं किस लोक से लाए थे?'‘ अपनी कमेटी की हैं साहब!' कह प्रधान मुस्‍कुराया।‘गड! वैरी गुड!! मेन टेन करके रखा है कमेटी को?'‘बस जनाब की दुआ है।'‘मन लग रहा है यहां?'‘मतलब, मैं समझा नहीं जनाब का???'‘राजधानी में एक बोर्ड के चेयरमेन का पद खाली है। कहो तो??'‘आपकी दुआ चाहिए बस!' कह कमेटी प्रधान उनके चरणों में गिरा तो उन्‍होंने उसकी पीठ थपथपाई,‘ तो अब राजधानी जाने की तैयारी करो ।'काफी देर तक वे रेस्‍ट हाउस पसरे रहे। पार्टी वर्कर उनसे मिलना चाहते थे पर उन्‍होंने यह कह कर टाल दिया कि वे कई दिनों के थके हैं। अगली बार वे उनसे ही मिलने आएंगे। अभी वे वीआईपी बेड पर पड़े उनका स्‍वागत करने वाली महिलाओं के रूप सौंदर्य के बारे में सोच-सोच मस्‍त हुए जा रहे थे कि दरवाजे पर ठक- ठक हुई तो वे भीतर से ही बोले,‘ कौन??'‘ मंत्री जी!मैं पार्टी का जिला अध्‍यक्ष। आपसे अजेंर्ट काम है।'‘तो कल फोन पर बता देना,' उन्‍होंने अनमने से कहा।‘एक लोकार्पण और है साहब! आप अपने सोने वाले समय में से तनिक हमें दे देते तो हमारा उद्धार हो जाता।' उसने कहा तो उनकी बांछें खिल गईं। वे आनन- फानन में बेड पर से उठे और दरवाजा खोल बोले,‘ आओ, भीतरी आओ! कहो, कहां का लोकार्पण है?'‘ मनरेगा के तहत बने नए श्‍मशान घाट का!!' दरवाजा खुलने की देर थी कि जिला प्रधान के साथ चार पांच और जबरदस्‍ती भीतर घुस गए।‘यार! ये क्‍या मजाक कर रहे हो?श्‍मशान घाट का लोकार्पण करने को मंत्री ही रह गया क्‍या! अपने उस कब्र में टांगें लटकाए एमएलए से करवा लेते।'‘मंत्री जी, वह अपोजीशन का है।' सभी ने एक सुर में कहा तो मंत्री जी का गुस्‍सा कम हुआ,‘ पर श्‍मशान घाट!'‘ जनाब! उस श्‍मशान घाट पर दस गांवों के मुर्दे जलने आते हैं।'‘तो एक गांव में कितने वोटर हैं?'‘दस गांवों के कुल पांच सौ तो हैं ही। और वे सरकार से इन दिनों नाराज भी चल रहे हैं।'‘क्‍यों??'‘कह रहे हैं सरकार ने उनके इलाके से रूख ही मोड़ लिया है। अगर वे ऐसे ही नाराज रहे तो जनाब अगले चुनाव में हम कहीं के न रहेंगे,‘ जिला प्रधान ने कहा तो उनके चेहरे पर चिंता की रेखा खिंच आई। काफी देर तक सोचते रहने के बाद बोले,‘ तो??'‘तो आप जाने साहब! हमारी डूबती नैया की पतवार आपके हाथों में हैं। हमें जनता के बीच मुंह दिखाने लायक बना दीजिए बस! आप जो एकबार श्‍मशान घाट का लोकार्पण कर दें तो आगे तो हम खुद संभाल लेंगे। पांच सौ वोट अपने पक्‍के।' सबने एक साथ कहा तो वे एकबार फिर जवान हुए,‘पर वहां भीड़ कहां से आएगी? तुम्‍हें तो पता है कि मैं रोटी के सहारे नहीं समारोह में जुटी भीड़ के सहारे जीता हूं।'‘ आप वह चिंता न कीजिए। यह काम हमारे जिम्‍मे रहा। हजारों तो वहां पहले ही बैठे हैं। उन्‍हें भी तालियां बजाने के लिए मजबूर न कर दिया तो हम भी कर्मठ पार्टी वर्कर नहीं! आपको वहां हम हरगिज भी निराश नहीं होने देंगे।'‘ तो एक काम करते हैं!'‘कहो मंत्री जी?'‘श्‍मशान घाट के लोकार्पण को ऐतिहासिक बनाने के लिए सीएमओ को फोन करो। और हां !वहां जाने को कतना समय लगेगा?'‘एक घंटा सर।'‘तो सारे विभागों को कह दो कि मंत्री जी चार घंटे बाद अमुक श्‍मशान घाट का लोकार्पण करने जा रहे हैं। वहां सब पहुंच जांए।'‘सीएमओ से क्‍या कहना है मंत्री जी??'‘उससे कहो कि मंत्री जी श्‍मशान घाट का लोकार्पण करने जा रहे हैं। एक मुर्दे का इंतजाम करो। पर एक बात ध्‍यान रखी जाए कि मुर्दा विपक्ष का हो। अपने पक्ष का हम मुर्दा भी खोना नहीं चाहते। मेरे पीए को बुलाना।'भीतर से आकर पीए ने सीएमओ को फोन लगाया,‘ कौन? सीएमओ ?'‘जी!'‘मैं मंत्री जी का बोल रहा हूं।'‘कहिए, क्‍या सेवा है मेरे लायक?' वह फोन सुनते -सुनते कुर्सी से खड़े हो गए।‘मंत्री जी एक मुर्दा चाहते हैं। इसी वक्‍त! वह भी अपोजीशन का!'‘पर इस वक्‍त तो․․․․․'‘मैं कुछ नहीं जानता! मंत्री जी ने चाहा है तो बस चाहा है․․․․' और फोन कट गया।देखते ही देखते सारे विभागों की गाडियां अपने- अपने अफसरों को लादे श्‍मशान घाट की ओर हवा पर बैठ दौड़ीं।․․․․․․․सीएमओ साहब की गाड़ी मुर्दा लिए सबसे आगे। बेचारे! पसीना पोंछते भगवान का धन्‍यवाद करते थक नहीं रहे थे। भगवान ने उनकी सुन ली जो ऐन मौके पर गलत इंजेक्‍शन लगने से बंदा मंत्री जी को प्‍यारा हो गया। वरना पद की गरिमा को सदा सदा के लिए बट्‌टा लग जाता।--

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Giving comfort under affliction requires that penetration into the human mind, joined to that experience which knows how to soothe, how to reason, and how to ridicule; taking the utmost care never to apply those arts improperly.
Henry Fielding
(1707-1754)
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