मैं तो कुतिया बॉस की

 वे आते ही मेरे गले लग फूट- फूट कर रोने लगे।ऐसे तो कभी लंबे प्रवास से लौट आने के बाद भी मेरी पत्‍नी जवानी के दिनों में मेरेगले लग कर भी नहीं रोई। हमेशा उसके मन में विरह को देखने के लिए मैं ही विरह मेंतड़पता रहा। पता नहीं उसमें विरह का भाव रहा भी होगा या नहीं। ये रसवादी तो कहतेफिरते हैं कि मनुष्य के मन में सभी भाव मौजूद रहते हैं और अवसर पाकर जाग उठते हैं।पर कम से कम मुझे अपनी पत्‍नी को लेकर आज तक वैसा तो नहीं लगा। वैसे भी अब हृदयमें भावों का अभाव कुछ ज्‍यादा ही चल रहा है। अब अभाव भी कहां रहने आएं जब किसी केपास हृदय ही न हो। भाव भी कहां रहें जब मन में दूसरे हजारों अभाव पूर्ति होने केबाद भी डेरा जमाए बैठे हों। बाजार के भावों के चलते मन के भाव तो आज मन के किसीकोने में मुर्गा बन कुकड़ू कूं कर रहे हैं। अब तो अपने वे दिन आ गए हैं कि खुद हीखुद के गले लगने का मन भी नहीं करता। गले लग कर दिखावे को ही सही, रोने की बात तोदूर रही।
मैंने उन्‍हेंअपने गले से किनारे कर उनकी जेब से उनका रूमाल निकाल उनके आंसू पोंछने के बाद हदसे पार का उनका हमदर्द होते पूछा,‘ मित्र कहो! इतने परेशान क्‍यों? माना आज कीजिंदगी भाग दौड़ के सिवाय और कुछ हासिल नहीं। पर कम से कम तुम्‍हें तो रोना नहींचाहिए। अच्‍छी नौकरी में हो। एक क्‍या, चार - चार बीवियां रख सकते हो,' तो वे और भी जोरसे रो पड़े मानों वे मेरे नहीं, अपनी मां के गले लग रो रहे हों।
आखिर काफीसमय के बाद उनका रोना बंद हुआ तो वे सिसकियों की भीड़ के बीच से अपनी जुबान कोगुजारते बोले,' मेरेप्रभु! बड़े भाई!! मेरे बाप!! बॉस से परेशान हूं। बॉस को नहीं पटा पा रहा हूं।इसलिए बस केवल वेतन से ही गुजारा चला रहा हूं। और आप तो जानते हैं कि आज के दौरमें कोरे वतन से कौन खुश हो पाया? बीवी हर चौथे दिन मायके जाने की धमकी देती है।
जग जानताहै कि बॉस से परेशानी दुनिया की सबसे बड़ी परेशानी होती है। इसी परेशानी के चलते इतिहासगवाह है कि कई आत्‍महत्‍या तक कर गए। आज तक किसी को कुछ न बता सका। मन ही मन घुटतारहा। दूर- दूर तक अपना कोई नजर नहीं आ रहा था,' और देखते ही देखते उनमें कबीर की आत्‍मा पतानहीं कहां से प्रवेष कर गई,‘ ऐसा कोई नां मिलै जासू कहूं निसंक। जासू हृदय की कही सोफिरि मांडै कंक ।
आप तो तत्‍वज्ञानी है। पहुंचे हुए हैं। बॉस के इतने करीबी रहे हैं जितने बच्‍चे अपने बाप केनिकट भी नहीं होते। पति- पत्‍नी तो खैर आज निकट हैं ही नहीं। बस इसीलिए सबको छोड़आपकी शरण में आया मेरे मामू! सच कह रहा हूं कि ऐसा कोई न मिला जो सब बिधि देईबताई। पूरे दफ्‌तर मैं पुरूषि एक ताहि कैसे रहे ल्‍यौ लाई। बॉस उस्‍ताद ढूंढत मैंफिरौं विश्वासी मिलै न कोय। चमचे को चमचा मिलै तब हरामी जनम सफल होय।'
और पतानहीं मेरे भीतर उस वक्‍त कैसे किस कवि की आत्‍मा आ गई। ये दूसरी बात है कि मेरेभीतर अब मेरी आत्‍मा भी नहीं रहती। उस आत्‍मा ने देखते ही देखते मुझे कवि कर दिया।बंधु! ये सच है कि गो धन गज धन बाजि धन और रत्‍न धन खान। पर बंदा जब पावै बॉस धनतो चढ़यौ परवान। बॉस नाम सब कोऊ कहै पर कहिबै बहुत विचार। सोई नाम पीए कहै सोईकौतिगहार। अंत में यही कहना चाहूंगा बंधु कि बॉस मातियां की माल है पोई कांचैतागि। जतन करो झटका घंणां टूटैगी कहूं लागि।
हे नौकरीपेशा आर्यपुत्र ! जाओ, मेरे आशीर्वाद से बॉस भक्‍ति के नए युग में प्रवेष कर नौकरीके संपूर्ण सुखों के अधिकारी बनो। याद रखो! अधीनस्‍थ जब बॉस के प्रति अपना सब न्‍यौछावरकर देता है,बॉस केआगे अहंकार शून्य होने का नाटक कर अपनी रीढ़ की हड्‌डी निकलवा उनके चरणों में सेचाहकर भी उठ नहीं पाता तो हर किस्‍म के बॉस ऐसे बंदे को पा उसे गले लगाने के लिएके लिए दफ्‌तर के सारे काम छोड़ आतुर रहते हैं।
जाओ, मानुस देह काअभिमान तज बॉस का पट्‌टा गले में डालो और पंचम स्‍वर में सगर्व अलापो,‘ मैं तो कुतियाबॉस की एबीसी मेरा नांऊ। गले बॉस की जेवड़ी मन वांछित फल पाऊं।

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A lifetime of happiness! No man alive could bear it: it would be hell on earth.
George Bernard Shaw
(1856-1950)
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