अगले दिन अखबार में

शहर केतथाकथित बुद्धिजीवी कई दिनों से बेहद परेशान थे। बड़े दिन हो गए थे विचारों की कब्‍जीहुए हुए। इन दिनों के बीच न किसी महापुरुष की जयंती ही पड़ रही थी और न ही किसी कीपुण्‍यतिथि जिसे परंपरा बनाए रखने के लिए घर के सारे काम छोड़ पूरे उल्‍लास से मनाबहाने से कुछ पिया पिलाया जा सकता । उन्‍हें कब्‍जी निकालने के लिए कोई आयोजन नसूझ रहा था। बेचारों के दिमाग में कब्‍ज से अफारा, और भी राम जानेक्‍या हो जो चार दिन और किसी आयोजन में जाने का सुअवसर न मिले। दिन भर बाजार मेंधक्‍के खाते खाते वे अचानक देसी शराब के ठेके के पास से गुजरे, चारों ने एकदूसरे की ओर हिनहिनाते हुए देखा तो उनमें से एक ने अपना चार साल पहले ड्राईक्‍लीनकराया कोट ठीक करते कहा,‘ यार! हद हो गई! बगल में छोरा और मुहल्‍ले में ढिंढोरा!आयोजन सामने और हम मर गए शहर में इस छोर से उस छोर तक कुत्‍तों की तरह आयोजन कीतलाश में पर कहीं एक टुकड़ा आयोजन नसीब न हुआ। ये देखो, चलो नशा निवारणआयोजन ही कर लिया जाए। दूसरे हर आयोजन की तो देश में डेट फिक्‍स है पर नशा निवारणआयोजन तो कभी भी किया जा सकता है। इस बहाने रात को आयोजन के बाद थोड़ी थोड़ी गटकभी लेंगे और अगले रोज अखबार में चार लाइनें भी फोटो के साथ छपवा मारकर एक्‍टिवविचारकों की पंक्‍ति में भी जा खड़े होंगे।'
पर आयोजन के लिएअबके प्रशासन के किस विभाग को पटाया जाए?और तुझे तो पता है कि आज की डेट में बिनासरकारी स्‍पांसरशिप के लोग घर से मुर्दा भी नहीं निकालते ।'दूसरे ने चिंताकी रेखांए अपने माथे पर कुरेदीं।
यार! इस आयोजनके लिए तो मदद देने के लिए हर विभाग आगे आएगा। बस उन्‍हें कहने भर की देर है। कौननहीं चाहता कि नशा निवारण की आड़ में खुद हक से रूमानी हो लिया जाए।'
उन्‍होंनेपहली बारी इस आयोजन को मनाने के लिए एक भद्र विभाग से संपर्क किया और उनका भाग्‍यकी वहां से उनके कार्यक्रम को हरी झंडी मिल गई। भद्र विभाग के आफिसर ने कहा कि वेइस कार्यक्रम को गांधी को समर्पित करना चाहेंगे इसलिए कुछ कवि अवश्य हों जो समाजको कम से कम कविताओं के माध्‍यम से नशे से मुक्‍ति की बात करें। उनके लिए बाद मेंआफ द रिकार्ड पीने के साथ पारिश्रमिक की व्‍यवस्‍था भी होगी।
पर शहर केकवि हैं कि बिन पीए किसी भी विषय पर कविता बोलने को तैयार नहीं। उनमें से अधिकतरने तो साफ कर दिया कि कार्यक्रम चाहे कोई भी हो वे बिन पीए कविता नहीं कह सकते तोनहीं कह सकते। वे कविता करना छोड़ सकते हैं पर पीना नहीं।
तो यार ये पीनेका दौर कार्यक्रम के बाद कर लेना!'
पर कविता को बिनपीए बाहर निकालूंगा कैसे? तुम लेागों को क्‍या पता कि कविता को मन से बाहर निकालने केलिए कितनी मशक्‍कत करनी पड़ती है। थोडी सी तो चलेगी न??और पारिश्रमिक ??'
रखा है मेरेबाप। जानता हूं कि आज का कवि बिन पारिश्रमिक के शौच भी नहीं जाता। असल में क्‍याहै न कि आज के सरकारी कार्यक्रमों ने टके टके के कवियों को भी सिर पर चढ़ा दियाहै। रही बात पीने की तो बस हाथ जोड़ कर विनती है कि इतनी सी पी लेना कि किसी कोपता न चले कि कवि नशा निवारण पर भी पीकर कविता कहने आया है।'
और तय शामको शहर के भद्र विभाग के गेस्‍ट हाउस में कार्यक्रम शुरू हुआ। विभाग ने कार्यक्रमखत्‍म होने के बाद का सारा इंतजाम पहले ही कर दिया था, कार्यक्रम शुरूहोने का इंतजाम भले ही न हुआ हो। प्रेसवाले आने से पहले ही बड़बड़ाए जा रहे थे,‘ यार! जल्‍दीकरो! फोटो सा खिंचवा दो। मैटर बाद में दे जाना। अभी और भी जाना है। उन्‍होंनेप्रेस कांफ्रेंस के साथ डिनर का भी इंतजाम कर रखा है।' अचानक एक नेकार्यक्रम के संयोजक के कान में फुसफुसाया तो कहीं से आनन फानन में गांधी को ढूंढकर लाया गया। उनके ऊपर से बरसों की धूल गाली देते हुए बुद्धिजीवी ने झाड़ी,‘ यार गांधी! कमसे कम अपने ऊपर की धूल तो झाड़ लिया करो। कल ही मेरा धुलवाया कोट खराब करवा दिया।ये साला बुद्धिजीविता का चस्‍का भी बुरा होता है।'
कार्यक्रमशुरू होने से पहले जारी हुए प्रेसनोट में खास कहा गया कि नशा निवारण के अवसर परशहर के बुद्धिजीवियों ने ऐसे नशा विरोधी विचार रखे, कवियों ने ऐसीकविताएं पढ़ीं कि नशा शहर से शरम के मारे मीलों दूर भाग गया। गांधी चुपचाप प्रेसनोट बनाने में माहिर बुद्धिजीवी पर हंसते रहे। लिखवाना तो गांधी भी उस प्रेस नोटमें अपना वक्‍तव्‍य चाहते थे, पर चुप रहे।
पे्रस नोटकी ओर से मुक्‍त होने के बाद कार्यक्रम में नशा निवारण पर नशे में एक बुद्धिजीवीने अपने विचार रखे। दो चार कविताएं भी हुईं। सभी को छोड़ गांधी सब को शीशे की टूटीफ्रेम में बंद हो सुनते रहे, चश्मे में से ताकते हुए।
बिल मेंकुछ जाली विचारकों और कवियों के नाम भरे गए। आए हुओं का पारिश्रमिक तो मारा नहींजा सकता था। वे तो आए ही पारिश्रमिक के लिए थे।
आयोजक नेसंयोजक बुद्धिजीवियों के साथ कार्यक्रम को समेटने के बाद थकान को मिटाने के लिएजाली बिलों पर कवियों,विचारकों ने एक दूसरे के जाली साइन कर वहीं बैठ गले तर किए।काफी देर तक कार्यक्रम की सफलता पर एक दूसरे को बधाई दी जाती रही। उठने की किसीमें हिम्‍मत न बची थी।
दूसरे दिनअखबार में खबर छपी - शहर में गांधी के सम्‍मुख सफल नशा निवारण कार्यक्रम। शहर केगणमान्‍य बुद्धिजीवियों और कवियों ने ली देष से नशे को समूल समाप्‍त करने की शपथ।उस रात गांधी बेचारे अकेले ही उल्‍टे हुए गिलासों के साथ प्रेसरूम ही रहे। मैं तोवहां था ही नहीं। पर मजे की बात! अखबार में मेरा नाम भी छपा था।

 

1 comments:

  1. जनाब, हमने तो आप का व्यंग्य पढ़ कर अपनी रुह तर कर ली ! आप बहुत उम्दा लिखते हो ! जरुर ऊंची उड़ान भरन्र वाले हो !

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They are the good Samaritans that find us robbed of all our dreams by the roadside of life, bleeding and weeping and desolate; and such is their skill and wealth and goodness of heart, that they not only heal up our wounds, but restore to us the lost property of our dreams.
Richard le Gallienne
(1866-1947)
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