मुहब्बत में राजनीति


  इसेकहते हैं भाई जी रिसोर्सफुलनेस! एक घंटे पहले धर्म बदला तो दूसरे घंटे बाद पत्नीबदल ली। इधर मर गया छह महीने से फटी चड्डी बदलने की प्लान बनाता- बनाता! पर चड्डीफिर भी वहीं की वहीं। कल फिर जब दस दुकानों पर चड्डी के रेट कन्सल्ट करने के बादखाली हाथ घर लौटा तो द्वार पर खड़ी पत्नी ने उलाहना दिया, "आगए न आज फिर खाली हाथ?"
"क्या करता! बस! चड्डी लेने ही वाला था कितुम्हारे चेहरे पर आई छाइयों की याद आ गई।  और मैं तुम्हारे लिए छाई नाशक क्रीम ले आया। मुझे तब अपनी चड्डी से जरूरीतुम्हारी छाई नाशक क्रीम लगी। ये लो।" सुन पत्नी से कुछ कहते न बना।
अभी पत्नी के लिए लाई छाई नाशक क्रीम की यूज विधि बड़ीसावधानी से पढ़ ही रहा था कि वे आ पहुँचे, पत्तों के डोने में प्रसाद लिए। माथे पर टीका लगाए। पिछले कल तक वे नास्तिकथे। घोर नास्तिक। धूप की बास भी आ जाती तो बीसियों छींकें लेते। बीड़ी के बंडल परभी भगवान का फोटो दिख जाता तो आँखों में दवाई डाल आँखें साफ कर ही आँखें खोलते।
उन्हींने बताया था कि वे पहले घोर आस्तिक थे। बात उनदिनों की है जब उनकी शादी नहीं हुई थी। वे भगवान का नाम लेकर रोज  इश्क़ करने सड़कों पर सरकारी सांड़ से निकलते और साँझ को सकुशल घर लौट आते। उसरोज भी वे भगवान का नाम लेकर ही इश्क़ फरमाने  निकले थे। पर तब भगवान ने साथ नहीं दिया और वे इश्क़ करते- करते ऐसे फँसे किविवाह करना पड़ा, कतई न चाहते हुए भी। बस! तबसे भगवान से उनका छत्तीस का आँकड़ा हो गया। हालाँकिभगवान ने बाद में सॉरी भी फील की, पर वे नहीं माने तो नहीं माने। ये तो कोई बात नहीं होती कि पहले तो आप किसीकोमरवा दो और बाद में सॉरी फील करके पूजनीय बने रहो।
"और यार, क्या कर रहे हो? लो प्रसाद लो।"
"प्रसाद और आप?"
"हाँ यार! मैं फिर आस्तिक हो गया। ले प्रसाद  और अपना जीवन सुधार।" कह उन्होंने डोने में से थोड़ा सा प्रसाद मेरे हाथपर रख दिया। पर मेरी पत्नी को नहीं दिया।
"पर ये प्रसाद है कहाँ का? आज तक हर जगह का प्रसाद ही तो खाया,परअपना जीवन नहीं सुधरा तो नहीं सुधरा। अब तो प्रसाद तो क्या भगवान पर से विश्वासउठने लगा है।" पत्नी के चेहरे की छाइयों को देख रोना निकलने ही वाला था बस!
" क्या बताऊँ यार! शहर में पहुँचे हुए मुहब्बतयोगी आए हैं। मुहब्बत पर वो प्रवचन करते हैं कि, खुदा खैर करे...वो प्रवचन करते हैं कि....ईश्वर हीमुहब्बत है, मुहब्बत ही ईश्वर है। मुहब्बत साधक तो मैंने बहुत देखे पर ऐसा मुहब्बत साधकपहली बार देखा। उनके प्रवचन सुन मन ऐसा गद्‌गद्‌ हुआ कि ... ले थोड़ा प्रसाद और लेऔर जीवन में सफल हो। चित्त शुद्ध हो जाएगा, पित्त ही चिंता किसे?" कह उन्होंने थोड़ा प्रसाद और दिया और किसी फिल्म के गीत पर बने भजन कोगुनगुनाते हुए आगे हो लिए।
अगले दिन मैं भी पत्नी को बिन बताए मुहब्बत योगी केप्रवचन सुनने हो लिया। सच हंस तो! जबसे इस धर्म में रहकर विवाह किया है उस दिन सेमुहब्बत को तरस गया हूं। बहुत कोशिश की ! हर एंगिल से कोशिश की, पर पत्नी में कमबख्त महबूबा कभी नज़र ही नहीं आई। जबपत्नी में महबूबा नज़र ही न आए तो भला मुहब्बत भी कैसे होती? बस साहब चले हुए हैं भरे रेगिस्तान में परछाइयों कोपानी समझते हुए। जब तक हैं, सफ़र में रहेंगे। समरथ तो चड्डी बदलने की नहीं, अब धर्म कैसे बदलें साहब?
पांडाल में तिल रखने को जगह नहीं। लोग थे कि पांडालके साथ वाले पेड़ों पर भी चढ़े हुए थे। सच्ची को! दुनिया बहुत भटक रही है।
वे मंच पर आए तो सफेद बाल वाले चार- चार बच्चों केमुहब्बतहीन बापों की आँखों से आँसुओं के बरसाती नाले फूट पड़े।
अपने चारों ओर उन्होंने चार- चार शिष्याओं को जमायातो मन किया अभी पेड़ पर से छालांग मारकर इनसे दीक्षा ले लूँ।
उन्होंने प्रवचन शुरू किए,"मुहब्बतअल्लाह है। ईश्वर प्रेम हो या न हो। मुहब्बत के लिए धर्म तो क्या जन्म बदल दो।मैंने भी बदला। मुहब्बत तपस्या है। जिस तरह एक जगह खड़ा खड़ा पानी सड़ जाता है उसीतरह एक पतनी के साथ रहते रहते मर्द सड़ जाता है। इसलिए छोड़ दो उस धर्म को जोपत्नी बदलने की इजाज़त नहीं देता। मुहब्बत त्याग है। देखो, इसीके अधीन हो मैंने पहली पत्नी का बेहिचके त्याग करदिया, बच्चों का त्याग कर दिया, बापू की पगड़ी सरे बाजार उछाल दी। इस त्याग के पीछेमेरा कोई स्वार्थ नहीं। बस! मैं तो चाहता हूँ मुहब्बत ज़िंदा रहे, उसके साथ नहीं तो इसके साथ ही सही। मेन मकसद तोमुहब्बत को ज़िंदा रखने से है। जब पहले घर में मुहब्बत ज़िंदा न दिखे तो और जगहमुहब्बत की अलख जगा लो, यही सबसे बडा धर्म है। पद, संपत्ति तो हाथ पाँव का मैल है। घरवाले अगर घर से बेदखल कर दें, तो कर दें। घबराना नहीं। घबराए तो गए काम से। भक्तो!मुहब्बत की रक्षा के लिए आप सब आगे आओ। यह एक अभियान है। इस अभियान की मशाल मैंनेजला दी है। अब यह आप भक्तों पर है कि ये मशाल जलती रहे या बुझ जाए। छोड़ो ये लोकलाज। छोड़ो ये तिल तिल मरते हुए जीना। अपने दिल से पूछो- केवल एक पत्नी के साथ कौनखुश है? जो हो वह हाथ खड़े करे।" कह वे मुहब्बत योगी तनिक रुके और मजे की बातह्ज़ारों की भीड़ में एक हाथ भी खड़ा न हुआ। उन्होंने मुस्कुराते हुए आगे कहना शुरूकिया,"नहीं न! नहीं! तो हर धर्म में ये गुंजाइश क्यों नहीं ? होनी चाहिए। माँग करो सरकार से, संविधान से, हर धर्म से, लोकतंत्र से कहो हम वोट उसे ही देंगे जो समाज में मुहब्बत के लिए त्याग करसके। कौन कौन वोट करेगा ऐसे क्रांतिकारी,युगपुरुष को?" कहने भर की देर थी कि भक्तों ने हाथ तो हाथ दोनों टांगें भी समर्थन में खड़ी करदीं। उन्होंने भक्तों को दोनों हाथों से आशीर्वाद दिया और अपनी शिष्याओं के साथपंचतारा होटल को हो लिए।
 और मैं एक नए जोश खरोश के साथ डोने में प्रसाद लिए घर। क्याआपको भी प्रसाद दे कृतार्थ करूँ जनाब! 

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God is for men and religion is for women.
Joseph Conrad
(1857-1924)
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