रूसी युवतियों ने किया कविता पाठ



प्रो0 वीरेन्द्र मेंहदीरत्ता की अध्यक्षता में हुई ‘अभिव्यक्ति’ की मासिक गोष्ठी  में इस बार रूस से आई दो युवतियों अन्या और शाशा ने पुश्किन की रोमांटिक कविताओं का पाठ किया जिसका अनुवाद डा0 पंकज मालवीय ने साथ-साथ सुनाया। डा0 मालवीय ने ल्यूदमिला उलित्सकाया की एक कहानी का अनुवाद ‘अंतिम सप्ताह’ भी पढ़कर सुनाया जो रूस की मौजूदा सामाजिक त्रासदी को इंगित करती है। कथाकार रतन चंद ‘रत्नेश’ ने अपनी नई कहानी ‘आपकी सुरक्षा में’ का पाठ किया। पंजाबी साहित्यकार एन. एस. रतन ने कहानी की प्रशंसा   करते हुए कहा कि व्यंग्यात्मक रूप से लिखी गई यह कहानी शहर की असुरक्षा की कई परतें खोलती है। डा0 एन. के. ओबराय, डा0 इन्दु बाली, डा0 प्रसून प्रसाद, ओमप्रकाश  सोंधी और अन्य साहित्यकारों ने भी इस पर चर्चा की। डा0 प्रसून प्रसाद ने अपनी तीन नई कविताएं पढ़ी जबकि महेंद्र और आर. पी. सिंह ने गज़लों का पाठ किया। कैलाश आहलूवालिया ने अपनी कनाडा प्रवास के यात्रा-संस्मरण पढ़कर सुनाया। उभरते हुए कहानीकार मनोज तिवारी की कहानी ‘स्वप्निल गुलदाउदी’ भी बहुत पसंद की गई जो एक गरीब परिवार की मनोव्यथा दर्शाती  है।

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As to the sufferers, whose sole inheritance was labor, and who had lost that inheritance; who could not get work, and consequently could not get wages, and consequently could not get bread; they were left to suffer on, perhaps inevitably left.
Charlotte Bronte
(1816-1855)
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