भ्रष्टाचारियों का ड्रेस-कोड : रतन चंद ‘रत्नेश’




वैसे तो रिश्वत  लेना और देना हमेशा चर्चा का विषय  रहता है। एक कांड की चर्चा कुछ दिनों तक होती है, उसके बाद कोई नया कांड सामने आ जाता है तो उसकी चर्चा आरंभ हो जाती है। पुराना कांड हासिये पर चला जाता है। यों भी इनसान के दिमाग का आकार इतना छोटा है कि उसमें सभी कांडों को झेलने की ताकत नहीं होती, इसलिए पुराने कांडों को डिलीट यानी कि हटाते रहना पड़ता है। पिछले दिनों सिटी ब्यूटीफुल में भी एक रिश्ववत कांड सुखियों में था जो अब धीरे-धीरे धूमिल होने लगा है। यों तो मुझ जैसे साधारण लोगों को रिश्ववत कांड से कुछ लेना-देना नहीं होता लेकिन यह जानकर तब बड़ा दुःख होता है जब पांच-दस हजार रूपए की रिश्ववत लेते हुए कोई पकड़ा जाता है। बड़ी शर्म महसूस होती है। लोग छोटी-मोटी रकम रिश्वतस्वरूप लेते हैं और उससे भी शर्मनाक बात यह होती है कि वे पकड़े जाते हैं। मेरा यह मानना है कि जो सैकड़ों-हजारों में रिश्वत लेते हैं, वे या तो अनाड़ी होते हैं या फिर अज्ञानी। उन्हें कम से कम इतना ज्ञान होना चाहिए कि आज के दौर में कितना
रिश्वत लेना वाजिब है। उन कमअक्लों को यह भी पता नहीं होता कि जो शख्स पांच हजार की रिश्वत दे रहा है, वह उन्हें मूर्ख समझ रहा है। भला आज के जमाने में रिश्वत में हजारों का क्या काम? इससे बेहतर यह है कि आप रिश्वत देने वाले को पकड़वा दें और अपना सर गर्व से ऊंचा करें। आखिरकार रिश्ववत लेने में भी अपनी औकात बनाए रखना समझदारी की निशानी है।
भ्रष्टाचार के मामले में हम पचास से भी अधिक देशों से आगे हैं। कम से कम एक मिसाल तो कायम की ही जा सकती है कि यहां लाख से नीचे लेन-देन नहीं होता। जो लाख से नीचे रिश्वत लेते धरे जाते हैं, उनके लिए ड्रेस-कोड  तो अवश्य होना चाहिए ताकि आइंदा से कोई कम रिश्वत लेने की हिमाकत न करे। ड्रेस-कोड  का अर्थ स्पष्ट करना यहां उचित रहेगा। इस मामले में फिलहाल शीर्षस्थ भ्रष्ट देश इंडोनेशिया में विचार-विमर्श चल रहा है। वहां के भ्रष्टाचार निरोधक विभाग का मानना है कि भ्रष्टाचार मामले के आरोपियों के लिए यदि ड्रेसकोड निर्धारित कर दिया जाय तो शायद वे कुछ शर्म  महसूस करें। एक विशेष  रंग के कपड़े पहने व्यक्ति को देखते ही लोग जान जाएगें कि वह भ्रष्टाचारी है। इससे दूसरे लोगों को भ्रष्टाचार से दूर रहने का सबक मिलेगा। वहां की आम जनता ने यह सुझाव भी दे डाला है कि ड्रेस-कोड  का रंग चटख लाल या गुलाबी रखा जाय। हमारे देश में भ्रष्टाचार के लिए इन रंगों का ड्रेस-कोड चुना गया तो इसका उल्टा असर हो सकता है। भ्रष्टाचारी कहीं अपने आप को फिल्मी सितारे न समझने लगें और शर्म महसूस करे के वजाय कुछ ज्यादा ही गौरान्वित महससू करने न लग जाएं। यहां के लिए काला रंग ही शायद बेहतर रहेगा क्योंकि ऐसे लोगों का मुंह काला करने की हमारे यहां प्राचीन परम्परा है। इंडोनेशिया करप्शन -वाच की राय है कि ड्रेस-कोड के पीछे आरोपी का नाम, केस संख्या आदि का भी उल्लेख हो। हमारे यहां राज्य का नाम लिखना भी जरूरी है क्योंकि कई बार राज्यों में भ्रष्टाचार को लेकर जबरदस्त होड़ देखने को मिलती है। कई लोगों की मानसिकता ही यही रहती है कि हम किसी मामले में पीछे न रहें, चाहे वह भ्रष्टाचार ही क्यों न हो। इंडोनेशिया  में भ्रष्टाचार-निरोधक इकाई के उपप्रमुख एम.जेसिन के अनुसार विशेष पोशाक पहनाकर किसी कैदी को जेल में डाला जाए ताकि वह अलग दिखे तथा अन्य कैदी यह जान सकें कि उसे भ्रष्टाचार के अपराध में सजा मिली है। इस मामने में भी हमारे यहां दिक्कत है। भ्रष्टाचारी को पहचान-चिह्न मिलते ही कई लोग उसे गॉडफादर बनाने के लिए व्यग्र हो उठते हैं। पुलिस भी उनकी सेवा में ऐसे जुट जाती है मानो वही उनका बेड़ा पार करेगा।
पुनश्चः मौजूदा भ्रष्टाचारी-निरोधक जो घमासान चल रहा है, उसमें इस पर भी विचार किया जाए.

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To furnish the means of acquiring knowledge is . . . the greatest benefit that can be conferred upon mankind. It prolongs life itself and enlarges the sphere of existence.
John Quincy Adams
(1767-1848)
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