शब्द (कविता - ममता व्‍यास)

मैंने जाना शब्द कैसे पनपते हैं भीतर
तुम मुझे शब्दवती करते थे हर बार
मन की कोख हरी होती थी बार-बार
ऐसे मैं शब्दवती होती थी...

तुमने मुझे शब्दवती छोड़ा था
ममता व्‍यास की हाल ही में
प्रकाशित पुस्‍तक

मैंने अकेले तुम्हारी शब्द-संतानों को जन्म दिया
पाला पोसा और सहेजा
देखो तुमसी ही दिखती है तुम्हारी पुत्री पीड़ा
जो जन्म से गूंगी ही है
और ये तुम्हारा पुत्र 'प्रेम'
बिलकुल तुम पर गया है
तुनक मिजाज, बात-बात पर रूठना
सताना और फिर मुस्कुराना...

तुम्हारी याद बहुत सालती रही
यादों के घर में पालती रही मैं तुम्हारी संतानों को
तुम कहते थे मैं अकेले प्रेम नहीं कर सकती
लेकिन मैंने तुम्हारे अंश को अकेले पाला है

सुनो...अब मुझे जाना होगा
जानती हूँ तुम कभी वापस नहीं आओगे...
तुम्हारा पुत्र प्रेम और पुत्री पीड़ा को यहीं छोड़े जा रही हूँ
जब कभी दुनियावी रिश्तों से फुर्सत मिले तो
खोज लेना अपनी संतानों को
अपने प्रेम को...
पीड़ा पीछे-पीछे चली आएगी...

न जाने क्यों मुझे लगता है

तुम कभी नहीं खोज पाओगे प्रेम 
तो सुनो, 
तुम जहाँ हो वहीं ठहर कर प्रतीक्षा करना
प्रेम...तुम्हें खुद खोज लेगा एक दिन 

---मनवा

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Noise proves nothing. Often a hen who has merely laid an egg cackles as if she had laid an asteroid.
Mark Twain
(1835-1910)
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