यूं भी कोई चुपचाप जाना होता है ? ---- SR Harnot

SR Harnot 
यूं भी कोई चुपचाप जाना होता है ?
हैलो मॉम, मैं हरनोट बोल रहा हूं।

मैं उस 18 वर्ष की 84 वर्षीय युवा लड़की से रोज बात किया करता था। वे हम सभी की माॅम थी, क्‍योंकि उन्‍हें कभी
भी 'आण्‍टी' बोलना पसन्‍द नहीं था। 4 दिसम्‍बर, 2015 को मैं शिमला आकाशवाणी उनके साथ गया था। पिछले कई दिनों से उनकी कहानियों की किताब 'जिंदानी' की कहानियां प्रसारित हो रही थीं जिसकी रिकार्डिंग वे अपनी आवाज में करवा रही थीं। अब उनका प्रसारण समाप्‍त हो रहा था, इसलिए मुझे उनकी कहानियों पर बात करने के लिए आकाशवाणी से सपना जी ने बुलाया था। हम जब साढ़े ग्‍यारह बजे स्‍टुडियो पहुंचे तो तत्‍तकाल रिकार्डिंग के लिए बुलाया गया लेकिन इसी पल कोई दूसरी रिकार्डिं होनी थी, इसलिए आधे धण्‍टें मैं और माॅम खूब बातें करते रहें, इसी बीच उनके अपने मोबाइल से कई चित्र भी खींच लिए------विडंबना देखिए, मेरे पास वही चंद तस्‍वीरें आज शेष रह गईं और वे चुपचाप चली गईं। वैसे उनके चले जाने की उम्र भी थीं, लेकिन जिस तरह वे गईं, विश्‍वास नहीं होता। एक साल पहले सोए सोए उनके पती सतीश जी चुपचाप निकल गए, और वैसे ही सरोज जी भी, लेकिन जिस तरह यह सब हुआ वह दिल दहलाने वाला था।
5 दिसम्‍बर को उन्‍होंने गिरीश और शीला से खूब बातें फोन पर कीं लेकिन मैं घर पर नहीं था और उस दिन कोई बात उनसे नहीं हुई। मैं सुन्‍नी में था और जब आज सुबह 5 बजे दिल्‍ली से अशोक ने फोन पर बताया तो मैं दंग रह गया। अशोक उनका मुंह बोलता बेटा है जो दिल्‍ली और शिमला में उनका पूरा ध्‍यान रखता है। सरोज जी के दोनों बेटे विदेशों में हैं और बेटी शायद हैदराबाद में। वे शिमला में अकेली रहती थीं। 5 की रात यानि 3 बजे के करीब शायद वे बाथरूम जाने के लिए उंठीं थीं। वे सर्दी से बचने के लिए हीटर लगाए रखती थीं और लगता है उठते हुए रजाई या चादर का किनारा हीटर पर पड़ गया। जब वे वापिस आने लगी होंगी तब तक उनका स्‍टी रूम जहां वे अब सोया करतीं, धुंए से भर गया था। आग ने पूरा साम्राज्‍य जमा लिया था उस कमरे में। वे वाकर के सहारे चलतीं थीं, सोचा होगा, बाथरूम में बचाव हो जाएगा, लेकिन वैसा नहीं हुआ और उनका दम घुट गया। उनके पड़ोसी ने जब धुएं और अाग की लपटें खिड़की से बाहर आते देखीं तो उनके एक पड़ोसी बातिश उनके घर आए लेकिन दरवाजा भीतर से बंद था, पुलिस और फायर ब्रिगेड बुलाई गई। भीतर वह 18 वर्ष की लड़की बाथरूम के साथ अचेत पड़ी थी, स्‍नोडन अस्‍पताल ले जाया गया लेकिन वह पहले ही चली गई थीं। अशेाक शिमला पहुंच गया है। उनका बेटा विदेश से शायद कल रात पहुंचेगा। बेटी कल यानि 7 की सुबह पहुंच जाएगी और उनका दाहसंस्‍कार मंगलवार को किया जाना है, आप यदि इस पोस्‍ट को पढ़ें तो अशोक से 09811418182 या भाई बातिश से 09418647046 से सम्‍पर्क कर लें और उनकी अंतिम यात्रा में अवश्‍य शामिल होने का प्रयास करें, पता नहीं मुझे यह अवसर मिलता है या नहीं, मैं शिमला से बाहर हूं।
हमारी संस्‍था हिमालय साहित्‍य मंच ने उन्‍हें वर्ष 2013 के 'आजीवन उपलब्धि सम्‍मान' से नवाजा था। पिछले दिनों
हम से बिछड़े रामदयाल नीरज जी को भी उन्‍हीं के साथ यह सम्‍मान दिया गया था। आज वे दोनों ही नहीं है, बस उनकी यादें शेष रह गई हैं। मंच का प्रयास है कि शीघ्र ही उनको हम मिलजुल कर याद करेंगे, आपका सहयोग रहा तो।
मेरे पास उनकी ये चंद तस्‍वीरें हैं और आंखों में आंसू हैं-----इन्‍हें ही यहां आपके लिए छोड़ रहा हूं, आगे कुछ कहने का साहस नहीं है-------क्‍या ऐसे भी कोई जाता है ? आज उनके अनेक काम शेष हैं, जिंदा हैं और जिंदा रहेंगे, हमेशा के लिए।

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Often and often afterwards, the beloved Aunt would ask me why I had never told anyone how I was being treated. Children tell little more than animals, for what comes to them they accept as eternally established.
Rudyard Kipling
(1865-1936)
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