कविता वैराग्य -- राजीव डोगरा

मेरा वैराग्य,
वास्तव में मेरा सौभाग्य है।
मेरी हस्ती,
उस खुदा की मस्ती है।
मेरा निश्चल प्रेम,
उस ईश्वर का प्रतिरूप है।
मेरी स्तुति,
उस ईश् की अभिव्यक्ति है।
मेरी वंदना,
उस अलख निरंजन की अनुभूति है।
मेरी भक्ति,
उस तत्पुरुष के लिए आस्था है।
मेरी शक्ति 
परब्रह्म स्वरूप की मात्रा अंश है।

राजीव डोगरा
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
(भाषा अध्यापक)
गवर्नमेंट हाई स्कूल,ठाकुरद्वारा।
पिन कोड 176029
9876777233

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To retire is not to flee, and there is no wisdom in waiting when danger outweighs hope, and it is the part of wise men to preserve themselves to-day for to-morrow, and not risk all in one day.
Miguel de Cervantes
(1547-1616)
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