निशब्द के शब्द -- सीताराम शर्मा सिद्धार्थ

मैं हो गया हूं मौन
कुछ कहते हैं
कोई कहता है कि भटक गया हूं
कठोर प्रतिक्रियाएं मुझे उद्वेलित नहीं करती
देखता हूं दुनिया को
आंखें बंद करके मुस्कुरा देता हूं
और कई बार रोता  हूं चीखता भी हूं 
मौन ही इतनी जोर से 
मेरा मौन गहराता जाता है
मेरी चीख जम जाती है 
हिमखंड की तरह  
कठोर जला देने वाले अतिशीत शब्दों में
जो धीरे-धीरे निकलते हैं
पिघल पिघल कर 
लेखनी की जिव्हा के बाहर

एक मुस्कान के साथ प्रवेश करता हूं
 कभी अंतःद्वार से आत्मा तक
भासित होता है  स्वर्णिम पथ
मेरी एक नजर में झूमने लगते हैं फूल
उड़ती है कुछ पंखुड़ियां कुछ लाल होते पत्ते
ह्रदय से फूट पड़ती है  
 फैल जाने को किसी फलक पर  निशब्द
 सरस सलिल शब् सीताराम शर्मा सिद्धार्थ



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A lifetime of happiness! No man alive could bear it: it would be hell on earth.
George Bernard Shaw
(1856-1950)
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