लघुकथा :हिस्से का आसमान --- नन्द लाल भारती

 


पिताजी दुर्घटना के शिकार हो गए और चल बसे। मां भी यह सदमा ज्यादा दिनों तक नहीं ढो सकी । दिल धीरे-धीरे धडकना बंद करने लगा ।अन्तत: सांसे जहां की तहां थम गई।अब इकलौती बेटी पुष्पा भाईयों के अनुशासन और परवरिश में पल-पढ-बढ़ रही थी ।भाईयों ने कोई कोतहाई नहीं बरता । बहन के हिस्से के दर्द का रसपान भी किया। मांता-पिता की इच्छा के अनुसार शिक्षा और संस्कार  दिये ।

भाईयों ने बहन पुष्पा का ब्याह बड़े रज-गज से किया। दिखावे पर  पैसा पानी की तरह बहाया। कई गांवों मे ब्याह की चमक चर्चित हुई। वाहवाही भी बहुत मिली ।शादी के दिन की चकाचौंध पुष्पा को बेचैन कर रही थी आंखें भी बरस रही थी ।

दूल्हे राजा अच्छे मिले हैं, कम्पनी मे मैनेजर हैं, हर खुशी तो है,फिलहाल कोई कमी तो नहीं है पुष्पा की बड़ी भाभी बोली ।

मै बहुत खुश हूँ पर भाभी जो पैसा भाई लोग पानी की तरह बहा रहे है, इसका थोड़ा सा हिस्सा मेरे कैरिअर पर बहा दिये होते तो मैं अपने पैरों पर खड़ी होती। मैं भी पा लेती अपने हिस्से का आसमान ।

भाभी माथा चूमते  हुए बोली ऐसा तो सोचा ही नहीं ।

भाभी अब सोचना मुनिया के लिए ताकि मुनिया पा ले अपने हिस्से का आसमान पुष्पा बोली ।

डां नन्दलाल भारती

07/07/2021

 

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(1842-1914)
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