गीतकार शैलन्द्र को श्रद्दांजलि


'मारे गए गुलफ़ाम' पर तीसरी कसम बनाने वाले गीतकार शैलन्द्र का कल 30 अगस्त को जन्म दिन है। मारे गए गुलफाम बनाने के क्रम में शैलन्द्र साहब का भी वही हष्र हुआ। अपना सब कुछ इस फिल्म पर झोंक कर सचमुच वे मारे गए। इस सदमें को बर्दाश्त न करते हुए अंतत: 14 दिसंबर, 1966  को वे इस जगत से विदा हो गए।इस दिन राजकपूर साहब का जन्मदिन था।  फ़िल्म ज़बरद्स्त सफल हुई लेकिन इस सफलता को देखने के लिए वे नहीं रहे। उतना इंतज़ार उनकी आत्मा को गवारा न हुआ। गीतों ने तो लोकप्रियता की हदें पार की, चाहे वह पान खाए संईया हमार हो या चलत मुसाफिर मोह लीना रे पिंजरे वाली मुनिया या सजन रे झूठ मत बोलो।  शैलेन्द्र साहब ने उस समय के सभी संगीतकारों सलिल चौधरी, एस. एन. त्रिपाठी, एस. डी. बर्मन, पं. रविशंकर के साथ काम किया लेकिन राजकपूर, शैलन्द्र और शंकर जयकिशन ने मिलकर कालजयी गीत-संगीत की सर्जना की।


उनकी लिखित पंक्तियां उन पर प्रासंगिक प्रतीत होती हैं :-

' के मर के भी किसी को याद आएंगे
किसी  के आँसुओं में मुस्कराएंगे
कहेगा फूल हर कली से सौ बार
जीना इसी का नाम है।'








साहित्य सुगंध परिवार की भाव-भीनी श्रद्धांजलि कलम के उस चितेरे के नाम !


प्रस्तुति - नीलम शर्मा 'अंशु'

3 comments:

  1. सीधे सादे शब्दों में दिल को छू लेने वाले मधुर गीतों के रचयिता शैलेन्द्र जी की पावन स्मृति को शत शत नमन !

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  2. ऐसा रचनाकार अब भी याद आता है. मुकेश जी का पूरा नाम आज मालूम पड़ा. वास्तव में दिल से गाने वाले गायक को नमन.

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A man that is born falls into a dream like a man who falls into the sea. If he tries to climb out into the air as inexperienced people endeavor to do, he drowns.
Joseph Conrad
(1857-1924)
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