साहित्यिक विचार मंच द्वारा गोष्ठी का आयोजन

 साहित्यिक विचार मंच द्वारा उत्तम रेस्टोरेन्ट, सैक्टर-46 में बारहवीं साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी की अध्यक्षता मंच के संस्थापक अध्यक्ष पंजाबी साहित्यकार एन एस रतन ने की। गोष्ठी का संचालन मंच के सचिव प्रसिद्ध ग़ज़लकार अमरजीत ‘अमर’ ने किया। ग़ज़लकार बलबीर ‘तन्हा’ ने दो ग़ज़लों द्वारा गोष्ठी का शुभारम्भ किया। 

“दिल की हसरत जवान होती है, 

जैसे-जैसे ये उम्र ढलती है”
राजेश ‘पंकज’ ने अपनी कविता “चौदह सितंबर” में राष्ट्रभाषा हिन्दी की अनदेखी पर यूं कटाक्ष किया:
“मां, तेरी जिव्हा को
अजायब घर में रखा जाएगा”।
विजय कपूर ने हिन्दी कहानी “कहां तक फ़ैल गई रेत” तथा हिन्दी लघुकविताओं “ढेर”, “बर्फ़ से”, “वो पहेलियां” का पाठ किया। उपस्थित साहित्यकारों ने कहानी पर अपनी राय देते हुए लेखक को बधाई दी।
डा कैलाश आहलुवालिया ने कविताएं “याद आए रास्ते” तथा “तार पिछ्ले कल बंद हुई” सुना कर खूब तालियां बटोरी। 

मदन शर्मा ‘राकेश’ ने कविता “आत्म-समर्पण” तथा हिन्दी कहानी “सहमी संकुचाई जिन्दगी” का पाठ किया। कहानी में जांबाज पुलिसकर्मी के निजी जीवन की स्थितियों का बखूबी चित्रण किया गया। घायल सिपाही की संकल्प शक्ति को सभी ने सराहा।
अमरजीत ‘अमर’ ने अपनी हिन्दी ग़ज़लों से माहौल को रंगीन बना दिया।
“आज वो उसकी पहुंच से दूर सारे हो गए,
जिन फ़रिश्तों का मुकद्दर आदमी लिखता रहा”
“हमारे वास्ते अम्बर नहीं है,
मगर इस बात का अब डर नहीं है”
सुभाश भास्कर ने मदन शर्मा ‘राकेश’ की चर्चित कहानी “मुस्कान का दर्द” का पंजाबी रूपान्तर पेश किया जिसे बहुत सराहना मिली।
गोष्ठी के अध्यक्ष पंजाबी कवि एन एस रतन ने गुरु गोबिन्द सिंह जी की रचना “दशम ग्रन्थ” के अनेक अनजाने पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि यह ग्रन्थ गुरु जी ने खालसा पंथ की स्थापना से भी पहले सन 1696 में रचा था जो कि अब आंशिक रूप में उपलब्ध है। इस की भाषा मुख्यत: ब्रजभाषा तथा हिन्दी है तथा इस में कुछ रचनाएं फ़ारसी तथा पंजाबी में भी हैं। इस ग्रन्थ में 200 से अधिक छन्दरूपों के 15000 से ज्यादा छ्न्द शामिल हैं। अन्त में उन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में सभी उपस्थित कवियों व साहित्यकारों को बधाई दी और उन का धन्यवाद किया तथा उत्तम रेस्टोरेन्ट, सैक्टर-46 के सरदार बलविन्दर सिंह जी का विशेष आभार व्यक्त किया।

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Circus, n.: A place where horses, ponies and elephants are permitted to see men, women, and children acting the fool.
Ambrose Bierce
(1842-1914)
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